कैफेटेरिया में बहुत गहमागहमी थी। हम सब के लिए ये ऐतिहासिक अवसर था। 10.3 की टीआरपी को छू लेने और हिंदी टीवी न्यूज इंडस्ट्री पर चौथे स्थान पर पहुंचने के बाद हम लाइव इंडियन्स कैफेटेरिया में इकट्ठा हुए। सब में गजब का उत्साह था। हो भी क्यों न, पूरी जो हुई है… आसमां को छूने की आशा। धीरे-धीरे कैफेटेरिया बाहर तक भर गया। तकरीबन पांच सौ लोग इकट्ठा थे। हर डिपार्टमेंट का स्टाफ वहां मौजूद था।
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चौदह साल का वनवास बीता, सफर अब भी जारी है
: चलती रही ज़िंदगी : कहां से शुरुआत करूं मैं। रुकावटें कई रही हैं, लेकिन ज़िंदगी फिर भी चलती रही है, बढ़ती रही है। कभी खुशी के जज़्बात, तो कभी ग़म के हालात। डाल्टनगंज से दिल्ली आए 14 साल हो गए। लेकिन सफर जारी है। न जाने कैसे-कैसे जतन करने पड़े हाथ-पांव जमाने के लिए, और अब भी जारी है ये सब। निराशाएं भी मिली हैं और नतीजे भी।
होटल में आओगी तो चैनल में नौकरी पाओगी
[caption id="attachment_19451" align="alignleft" width="74"]अमर आनंद[/caption]उसके लिए वो दिन बेहद सदमे वाला था। प्रिंट और टेलीविजन मीडिया को 10 साल दे चुकी उस महिला पत्रकार को ऑफर किया गया- तुम्हारे लिए किसी भी चैनल में 45,000 की नौकरी दिला सकता हूं… बस एक रात तुमको फलाने होटल के कमरे में आना होगा। टेलीफोन पर ये घिनौना प्रस्ताव सुना रहा वो शख्स जो पत्रकारिता के नाम पर धब्बा था, कहता जा रहा था….