वो मेरे साथी नहीं, गुरु थे

सरताज : सन 69 के आसपास तब नैनीताल जिले के किच्छा कस्‍बे के एक हाई स्कूल में पढ़ता था मैं. और नौंवीं दसवीं में मेरा एक सहपाठी था, सरताज जैदी. उसकी हथेलियाँ राजनाथ सिंह से भी बड़ी थीं. बहुत खूबसूरत गाता था वो. मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ उसपे किसी भी अनवर या सोनू निगम से कहीं ज्यादा फब्ती थी. वैसी ही मुर्कियाँ लेता था वो. उसे सुनना रफ़ी साहब के साथ जीने जैसा था.

टीम अन्ना की सक्रियता के बाद हिसार में कांग्रेस का होगा सत्यानाश

कुछ भी कहो, सयानी या चतुर, अन्ना टीम ने हिसार में इस बार प्रचार के हथियार से काफी समझदार तरीके से प्रहार किया है. हिसार में उस ने अपनी गोटी चली बहुत सही समय पर है. देखभाल और सोच विचार के. अधिकतम लाभ और न्यूनतम हानि का राजनीति गणित मिलान करने के बाद.

मुझे अमर सिंह नहीं बनना

आकाशवाणी और कई चैनलों पे गूंजी है तो यकीनन मेरी भी आवाज़ अच्छी है. मुल्कराज आनंद से लेकर चार्ल्स डिकन्स और मार्क्स से लेकर प्रेमचंद तक मैंने दसवीं तक पढ़ लिए थे. हिंदी साहित्य मुझे उन ने पढ़ाया जिन का नाम भर पढ़ लेने से कोई साहित्यकार हो जाता है. पत्रकारिता की तीस साल तक. कई अमिताभ बच्चनों से परिचय अपना भी रहा. जी में आया कभी कभार कि चलो लगे हाथ किसी मुलायम के अमर अपन भी हो गुज़रते चलें.

प्रणाम गुरुदेव!

[caption id="attachment_21084" align="alignleft" width="80"]जगमोहन फुटेला[/caption]हुकमचंद खुराना जी छठी से दसवीं क्लास तक मेरे टीचर थे. दिन में स्कूल में. रात को गाँव में अपने घर पे. उन दिनों टीवी का सिग्नल सत्तर फुट का एंटीना लगा के भी नहीं था. रेडियो पे कमेंटरी सुना-सुना के क्रिकेट और सुरेश सरैय्या की अंग्रेजी से अवगत उन ने कराया. टेनिस भी उनकी रग-रग में था. दोनों खेलों के जैसे इन्साइक्लोपीडिया थे वे.

…तो वो मां, और अब ये बहन हाजिर हैं

: पुलिसिया कहर का शिकार हर चौथे पत्रकार का परिवार :  जबसे मैंने अपने मां के साथ हुए बुरे बर्ताव का प्रकरण उठाया है, मेरे पास दर्जनों ऐसे पत्रकारों के फोन या मेल आ चुके हैं जिनके घरवाले इसी तरह की स्थितियों से दो चार हो चुके हैं. किसी की बहन के साथ पुलिस वाले माफियागिरी दिखा चुके हैं तो किसी के भतीजे के साथ ऐसा हो चुका है. इंदौर से एक वरिष्ठ पत्रकार साथी ने फेसबुक के जरिए भेजे अपने संदेश में लिखा है- ”यशवंत जी, मैं आप के साथ हूं. मेरे भतीजे के साथ भी ऐसा दो बार हो चुका है. मैं आप की पीड़ा समझ सकता हूँ. मैं एक लिंक भेज रहा हूँ, जहाँ मैने आप की ओर से शिकायत की है. सड़क पर मैं आप के साथ हूँ.” इस मेल से इतना तो पता चलता ही है कि उनके भतीजे पुलिस उत्पीड़न के शिकार हो चुके हैं. अब एक मेल से आई लंबी स्टोरी पढ़ा रहा हूं जिसे लिखा है पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन फुटेला ने. फुटेला ने अपने राइटअप का जो शीर्षक दिया है, ” …तो वो मां, और अब ये बहन हाज़िर हैं…”, उसे ही प्रकाशित किया जा रहा है. जितने फोन संदेश व मेल संदेश आए, उसमें अगर मैं अनुपात निकालता हूं तो मोटामोटी कह सकता हूं कि हर चौथे पत्रकार का परिजन पुलिस उत्पीड़न का शिकार है. श्रवण शुक्ला वाले मामले से आप पहले से परिचित हैं.