: मुझे मिला उस ‘अपराध’ का दंड जो मैंने किया ही नहीं : जिदंगी कभी-कभी हमें इतना बेबस कर देती है कि हम मजबूत होने के बावजूद हालातों के सामने झुक जाते हैं और अपने स्वाभिमान को अपनी ही आखों के आगे तार-तार होता देखने को मजबूर हो जाते हैं। पत्रकार होने के नाते पुलिसिया कहर की कहानियां तो मैंने पहले से काफी सुन रखी थी, लेकिन इसके खौफनाक चेहरे से मेरा सामना बीते शनिवार (11 जून, 2011) की रात को हुआ।