सर्वेक्षणों के बहाने अश्लीलता परोसने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं देश के प्रतिष्ठित, लोकप्रिय और आमजनों की कहने जाने वाली पत्रिकाएं। सर्वेक्षणों के नतीजों को ये लपक लेते हैं। इन्हें मौका मिल जाता है नंगी जिस्म वाली तस्वीरें छापने के लिए। इन्हें बहाना मिल जाता है अश्लीलता फैलाने के लिए। इसे क्या कहें? खबरों का अभाव, विचार-विश्लेषणों का अभाव, या फिर प्रकाशकों- संपादकों की संकीर्ण होती यह सोच कि पाठकों को सिर्फ और सिर्फ अश्लीलता के माध्यम से ही खींचा जा सकता है? या फिर बाजारवाद इतना हावी है और आपको ऐसा लगता है कि सिर्फ अश्लीलता से ही पत्रिकाएं बिकेंगी? अगर ऐसा है और आपको सिर्फ बेचने से ही मतलब है तो फिर क्यों न ‘केवल व्यस्कों के लिए’ पत्रिकाएं निकाली- छापी जाएं? पारिवारिक पत्रिका के नाम पर सेक्स परोसना ठीक नहीं है। इण्डिया टुडे, आउटलुक जैसी पत्रिकाएं पारिवारिक हैं। अब तक तो मैं यही मानती हूं और ये मैग्जीनें दावा भी करती हैं।