आदरणीय अरविंद जी, सामान्यत: मैं निंदापरक टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया नहीं देती लेकिन आपने अध्यापन जैसे पवित्र पेशे से जुडे होने के बावजूद जागरण में छपे सुभाषिनी जी के लेख के आधार पर मुझ पर (बिना मेरी किताब पढने का कष्ट उठाये) साहित्यिक चोरी का जो गलत सलत आरोप लगाया है, उसपर प्रतिवाद ज़रूर करना चाहती हूँ. उम्मीद है अध्यापक होने के नाते आप खुद इस किताब को पढ कर भूल सुधार का प्रयास करेंगे.
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साहित्य की चौर्य परंपरा में मृणाल पांडे का भी नाम जुड़ा!
साहित्य की चौर्य परंपरा मे एक नया नाम प्रसार भारती की सर्वेसर्वा मृणाल पांडे का भी जुड़ गया है। 26 अप्रैल के हिंदुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर सुभाषिनी अली ने मराठी से विष्णु भट्ट गोडसे वरसईकर कृत यात्रावृतांत के मराठी से हिंदी अनुवाद को मृंणाल पांडे का अदभुत कारनामा सिद्ध किया है। विद्वान लेखिका को शायद जानकारी नहीं है कि विष्णु भट्ट गोडसे की इस अत्यंत चर्चित पुस्तक का बरसों पहले कई विद्वान लेखकों ने अनुवाद कर दिया है जिनमें पं. अमृतलाल नागर भी शामिल हैं।