नीरा राडिया से अनंत कुमार की नजदीकियों के चलते ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय लेकर संस्कृति मंत्रालय भेज दिया था. नीरा के चलते ही अनंत कुमार का अपने परिवार से झगड़ा भी शुरू हो गया था. यह खुलासा वरिष्ठ वकील आरके आनंद ने अपनी किताब “Close encounters with Niira Radia” में किया है.
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राडिया प्रकरण में पत्रकारों ने रेखा पार किया : शेखर गुप्ता
इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर इन चीफ एवं एनडीटीवी 24 x 7 के इंटरव्यू आधारित कार्यक्रम ‘वॉक द टॉक’ के प्रस्तोता शेखर गुप्ता मानते हैं कि राडिया के साथ बातचीत में कुछ पत्रकार जरूर मूल बात से भटकर कर कुछ इधर उधर की बात की अविवेकेपूर्ण बातें की, लेकिन उन पर लगे आरोप किसी मामले में साबित नहीं हुए हैं. हालांकि वे मानते हैं कि पत्रकारों ने पत्रकारिता की रेखा को पार किया था. शेखर गुप्ता ने ये बातें मेन्स फैशन मैगजीन जीक्यू (जेंटलमैंन्स क्वाटर्ली) को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में कही.
राडिया से बतियाने वाले पत्रकारों को पीएसी भेजेगी समन
संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि जिन पत्रकारों-संपादकों के नाम 2जी स्पेक्ट्रम आबंटन घोटाले के टेपों में सामने आए हैं, वे पीएसी के सामने पेश होंगे.
राडिया टेप प्रकरण : केंद्र सरकार पर बरसे टाटा
टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने नीरा राडिया टेपों के मीडिया में बंटने और प्रसारित होने को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की है. टाटा उच्चतम न्यायालय में दाखिल किए गए अपने हलफनामा में कहा कि पिछले महीने उन्होंने जो रिट याचिका दायर की थी कि वह केवल टेप किए गए बातचीत का प्रकाशन रोकने के लिए नहीं बल्कि टेप किए गए बातचीत के अंधाधुंध प्रकाशन के चलते बहुत से लोगों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए थी.
किसकी ‘छवि’ की चिंता करे मीडिया?
पढऩे-सुनने में यह कड़वा तो लगेगा, किंतु सच यही है कि इंडिया और भारत नाम के हमारे देश में एक ओर जहां सामर्थ्यवानों को हजारों-लाखों करोड़ लुटने की छूट मिली हुई है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी झूठ, फरेब और धूर्तता की विशाल शासकीय चट्टान के नीचे दब छटपटा रहा है। इसकी सुननेवाला, सुध लेनेवाला कोई नहीं। दुखी मन से निकली इस टिप्पणी के लिए क्षमा करेंगे कि न्यायपालिका का आचरण (अपवादस्वरूप ही सही) भी सामर्थ्यवानों का पक्षधर दिखने लगा है।
बरखा ने बनवाया राजा को मंत्री!
कनिमोझी ने अपने पिता और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि से कहा था यदि उन्होंने मारन को मंत्री बनने से नहीं रोका तो वे आत्महत्या कर लेंगी। कनिमोझी के बारे में यह जानकारी नीरा राडिया ने सीआईआई के पूर्व अध्यक्ष तरुण दास को दी थी।
आखिर में राडिया गैंग के पत्रकार वेबमीडिया को घेरने की कोशिश करेंगे
नीरा राडिया के टेलीफोन के शिकार हुए लोगों की नयी किश्त बाज़ार में आ गयी है. पहली किश्त में तो अंग्रेज़ी वाले पत्रकार और दिल्ली के काकटेल सर्किट वालों की इज्ज़त की धज्जियां उडी थीं. उनमें से दो को तो उनके संगठनों ने निपटा दिया. वीर संघवी और प्रभु चावला को निकाल दिया गया है लेकिन बरखा दत्त वाले लोग अभी डटे हुए हैं, मानने को तैयार नहीं हैं कि बरखा दत्त गलती भी कर सकती हैं. आउटलुक और भड़ास वालों की कृपा से सारी दुनिया को औपचारिक तौर पर मालूम हो गया है कि पत्रकारिता के टाप पर बैठे कुछ लोग दलाली भी करते थे. हालांकि दिल्ली में सक्रिय ज़्यादातर लोगों को मालूम है कि खेल होता था, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि उसके बारे में बात कर सके.
प्रभु चावला की कमी किसे अखरेगी?
आखिरकार इंडिया टुडे समूह ने प्रभु चावला से प्रिंट छुड़ा ही दिया। साठ साल की उम्र में जब लोग रिटायर होते हैं, प्रभु चावला एक बार फिर इंडियन एक्सप्रेस की नौकरी करने चल दिए। इंडियन एक्सप्रेस का विचित्र तथ्य यह है कि इसके दो हिस्से हैं। एक मूल इंडियन एक्सप्रेस जो उत्तर और पश्चिम भारत से निकलता हैं और दूसरा न्यू इंडियन एक्सप्रेस जो बंटवारे के बाद दक्षिण भारतीय प्रदेशों से चलता है। यह संयोग भी हो सकता है कि इस इंडियन एक्सप्रेस के ताकतवर संपादक शेखर गुप्ता एनडीटीवी के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम के संचालक हैं और प्रभु चावला को विस्थापित करने के पीछे उन एम जे अकबर का नाम लिया जाता है, जिन्होंने अपने अखबार संडे गार्जियन में एनडीटीवी की आर्थिक अनियमितताओं की खाट खड़ी की हैं और अब मुकदमा झेल रही है। इसके अलावा इन तीनों अखबारी हस्तियों में प्रभु चावला का सीधी बात शो जो टीवी पर आता है वह काफी टेढ़ा और हास्यास्पद है।
पैसे के खेल से जो पत्रकारिता चलेगी, वो पैसे का ही खेल करेगी
इन दिनों मीडिया में भ्रष्टाचार को लेकर बड़ा स्यापा हो रहा है. जिससे भी जितना बन पड़ रहा है, उतना विलाप वो कर रहा है. दुखी लोग कह रहे हैं कि बड़ा भ्रष्टाचार हो गया है! उनके कहने से ऐसा लग रहा है कि जैसे किन्हीं छोटे लोगों ने अपनी औकात भूल कर कोई बड़ी वारदात कर दी है! अरे भाई! जब बड़े लोगों ने की है तो बड़ी वारदात ही तो करेंगें! आखिर इतनी सड़ांध आने के बावजूद अभी भी तो बदस्तूर कहा ही जा रहा है कि देश के दो बड़े पत्रकार…!
धंधई लक्ष्मण रेखा से अनजान नहीं थे पत्रकार : मृणाल
सबको खबर देने और सबकी खबर लेने का दावा करने वाला, अपने को जनता का पक्षधर और सबसे तेज, निर्भीक व निष्पक्ष बताने वाला मीडिया राडिया टेपों के प्रकाश में आने के बाद जनता के बीच खुद सवालों के कठघरे में खड़ा है। देर से ही सही, तीन शीर्ष संस्थाओं ने हमपेशा लोगों के साथ इन सामयिक सवालों पर समवेत चर्चा की प्रशंसनीय पहल की। यह सही है कि गहरी स्पर्धा के युग में ताबड़तोड़ जटिल स्टोरी का पीछा करते हुए एक पत्रकार को हर तरह के लोगों से मिलना होता है। पर दलील दी जा रही है कि पत्रकार अगर दोस्ती का चरका देकर (स्ट्रिंगिंग एलॉन्ग) किसी ऐसे महत्वपूर्ण स्रोत से संपर्क साधे, जो कारपोरेटेड घरानों का ज्ञात और भरोसेमंद प्रवक्ता तथा राजनीतिक दलों से उनके हित साधन का जरिया भी हो, तो क्या उससे फोन पर बात करना पत्रकार के दागी होने का प्रमाण है?
बस कहें, क्षमा करें
ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि पत्रकार आपके खिलाफ सार्वजनिक तौर पर जो कुछ लिखते हैं, उसके लिए निजी तौर पर माफी मांग लेते हैं। मगर राडिया टेप मामला सामने आने के बाद आप ठीक इसके उलट यह बात कह सकते हैं कि कुछ पत्रकारों पर यह दबाव डाला जा रहा है कि उन्होंने निजी तौर पर जो कुछ किया या कहा, उसके बारे में वे सार्वजनिक तौर पर स्पष्टीकरण दें। वाइल्ड उन पत्रकारों की बात कर रहे थे जो ताकतवर लोगों के खिलाफ लिखते तो थे, मगर उनके साथ बेहतर संबंध बनाने की कोशिशों में जुटे रहते थे। मगर आज कुछ ऐसे बड़े पत्रकार देखने को मिल रहे हैं जो ताकतवर लोगों की तरफ से लिख रहे हैं या उनके लिए काम कर रहे हैं।
मीडिया की नपुंसक संस्थाएं
जिस राडिया प्रकरण को लेकर देश दुनिया मे भारत की भद्द पिट रही है, उस प्रकरण को सरकार का भ्रष्टाचार माना जाये या मीडिया में अब तक का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार, क्योंकि इस राडिया प्रकरण ने भारतीय मीडिया और उसके बड़ी मूंछ वालों की कलई खोल दी है। लेकिन शुक्र है राडिया प्रकरण की, जिसने यह भी साबित कर दिया है कि जिस बड़े पत्रकारों का नाम जप कर नए व पुराने मीडियाकर्मी अघाते नहीं थे, वे पूंछ उठने के बाद मादा निकल गए।
मैंने अपने को इस देश का नागरिक मानना छोड़ दिया है
यश जी प्रणाम, टेप सुने, बरखा वीर के उत्तर पढ़े. ज्यादा कुछ कहने को है नहीं. बहुत बड़ा पेट है इस भीड़तंत्र का, ये मसला भी पचा लिया जायेगा. वैसे भी भोपाल गैस कांड पे आये अदालत के निर्णय के बाद से ही मैंने अपने को इस देश का नागरिक मानना छोड़ दिया है. देशभक्ति अब अपील नहीं करती. जीवन चल रहा है, चलता रहेगा, मौत आएगी आ जायेगी. ग़म और भी हैं, खुशियाँ और भी हैं, जीवन के आयाम और भी हैं.