‘‘ना इज्जत की चिंता, ना फिकर ईमान की, जय बोलो बेईमान की’’

अजय कृष्ण त्रिपाठी: नया साल – पुराना साल : अजय कृष्ण त्रिपाठी की नजर में…. : ‘ना इज्जत की चिंता, ना फिकर कोई ईमान की, जय बोलो बेईमान की जय बोलो….’! यह गीत फिल्मों में भारत कुमार के नाम से जाने-जाने वाले मनोज कुमार की फिल्म ‘दस नंबरी’ का है जिसे भारत कुमार ने फिल्मों में गाया था। यह फिल्मी गीत आज के दौर के भारत के परिदृश्य को पूरी तरह प्रतिबिंबित करता है। देश की मुख्य धारा में इस समय भ्रष्टाचार और घोटालों की यमुनोत्री बह रही है।

ऊंचे पद की नौकरी चाहिए तो बायोडाटा अलग ढंग से लिखना होगा

संजय कुमार सिंह: पुराना साल – नया साल : संजय कुमार सिंह की नजर में…. पहले मुझे काम करने वाले नहीं मिलते थे पर अब अपने करने भर काम भी नहीं है : नौकरी खोजने, घर में होम थिएटर लगाने और एक वेबसाइट बनाने की इच्छा : अनुवाद, अनुवादक और अब अनूदित का उपयोग : मेरे लिए बीता साल इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इस साल एक ज्ञान हुआ और मुझे सबसे ज्यादा खुशी इसी से हुई। अभी तक मैं मानता था कि जितना खर्च हो उतना कमाया जा सकता है। 1987 में नौकरी शुरू करने के बाद से इसी फार्मूले पर चल रहा था। खर्च पहले करता था कमाने की बाद में सोचता था। संयोग से गाड़ी ठीक-ठाक चलती रही।

अयोग्य गदहों को अनाप शनाप तरीके से दौलत कमाते और उसकी बदौलत सम्मान पाते देखकर इस समाज-सिस्टम से घृणा होती है

[caption id="attachment_19070" align="alignleft" width="68"]मदन कुमार तिवारीमदन कुमार तिवारी[/caption]: नया साल – पुराना साल : मदन कुमार तिवारी की नजर में…. : दुख होता है महंगाई की मार कुत्तों को झेलते देखकर :  बेटे का क्लास 12 में फेल हो जाने की घटना से भी बहुत तकलीफ़ हुई : एक और इच्छा है, मेरी तथा मेरी पत्नी की मौत एक साथ हो : एक ही तमन्ना है, जातीय आरक्षण की जगह आर्थिक आरक्षण के लिये आंदोलन करने की : गांव के अनपढ–अशिक्षित लोगों की आत्मीयता का कायल हूं : बिहार में बेटियों के स्कूल से साइकिल जाने की परिघटना को उनकी आजादी-मुक्ति के रूप में देखता हूं :

क्या करें? किस-किससे लड़ें? पूरा सिस्टम ही भ्रष्ट है

भुवेंद्र त्यागी: पुराना साल –  नया साल : भुवेंद्र त्यागी की नजर में….. मेरा देहाती मन आज भी करियर को सर्वोच्च लक्ष्य नहीं मानता : आज मुझे नौचंदी मेले के वही जवान और किसान याद आ रहे हैं : व्यायाम छूट जाने का अफसोस है, नये साल में इसे फिर शुरू करने का संकल्प : मीडिया पर एक विराट उपन्यास लिख रहा हूं, यह हमारे दौर का दस्तावेज होगा और मेरे जीवन का सबसे बड़ा काम : आज के दिये कल की मशाल हैं : सबसे बड़ी उम्मीद उन मीडियाकारों से जो आज भी इस पेशे में मिशन की भावना से आते हैं और पूंजी के चक्रव्यूह और करियरवादी दंद-फंद में नहीं फंसते-उलझते :

मुझे कृत्रिमता से नफरत है, सादगी से प्रेम

विष्णु नागर: पुराना साल – नया साल : विष्णु नागर की नजर में : मुझे लगता है कि जीवन में खुशियों और दुख की दो सीधी- सरल रेखाएं ही नहीं होतीं, कई धुंधली और उलझी रेखाएं भी होती हैं। जीवन में कुछ दुविधाएं, कुछ अनिश्चितताएं भी होती हैं। कुछ खुशियों के साथ कई बार कुछ दुख और कुछ परेशानियां भी जुड़ी होती हैं और कुछ दुखों के साथ कुछ खुशियां भी। इनमें क्या वजनी है और क्या हलका, कहना मुश्किल है। 2010 में मेरे लिए सबसे नया यह था कि 1974 से नौकरी करने का जो सिलसिला अब तक लगातार चला आ रहा था, वह टूटा। 60 की उम्र के बाद ये सब स्वाभाविक है।

पुराने नए साल के संधिकाल में आपसे एक अनुरोध

नए साल के मौके पर मैंने मीडिया के कई वरिष्ठों और कुछ संभावनाशील दोस्तों-कनिष्ठों को एक मेल भेजा. मेल में ये लिखा था… ”विषय: पुराने नए साल के संधिकाल में आपसे एक अनुरोध, आदरणीय, आपसे अनुरोध है कि बीत रहे साल और आने वाले नए साल को लेकर कुछ सोचें और लिखें. विषय मैं सुझा रहा हूं. बीत रहे साल में सबसे ज्यादा खुशी (उम्मीद, आशा, सकारात्मकता) और सबसे ज्यादा निराशा (अवसाद, अकेलापन, तनाव, नाउम्मीदी) किस चीज से मिली आपको. आने वाले साल में आप वो क्या कुछ करना चाहेंगे जो अब तक नहीं कर पाए, या नए साल में आप निजी और सार्वजनिक जीवन में क्या कुछ करना चाहेंगे. और आखिरी चीज, आपको इन दिनों किस चीज से मोहब्बत है और किससे नफरत है. जीवन के अकारथ बीतने का भाव कितना गहरा या हलका है मन में. क्या कुछ करने की खुशी है जो आपको जीवट बनाती है.