हिंदुस्तान, पटना के पच्चीस बरस होने पर नीतीश सरकार ने की विज्ञापनों की बरसात

बिहार की मीडिया पर आरोप लगता रहा है कि वह नीतीश सरकार के ‘सुशासन’ में घटने वाली नकारात्मक घटनाओं को उस तेवर के साथ नहीं उठाती जिस तेवर से उठाना चाहिए। इन सबके पीछे वजह नीतीश सरकार के मीडिया मैनेजमेंट को माना जाता है। इस मैनेजमेंट के तहत सरकारी विज्ञापन देकर बिहार की मीडिया को अपनी ओर कर लेने और सरकार के खिलाफ खबरों पर विराम लगा देना या केवल सकारात्मक खबरें ही छपवाना… जैसे काम होते हैं।

यही हाल रहा तो बिहार में पत्रकार और पत्रकारिता पर कोई यकीन नहीं करेगा

: फारबिसगंज पुलिस गोलीबारी का अखबारी कवरेज- एक पोस्टमार्टम : एक तरफ बाबा रामदेव के अनशन स्थल पर दिल्ली पुलिस की कार्रवाई की तुलना विपक्षी दल आपातकाल के दमन से कर रहे थे, दूसरी ओर बिहार में छपने वाले हिंदी अखबार भी इमरजेंसी के काले दिनों की याद दिला रहे थे. मगर बाबा के बहाने नहीं, फारबिसगंज में पुलिस गोलीबारी की रिपोर्टिंग के आइने में.

28.47 crore spent on Govt. advt in Bihar last year

Patna : A man asked his wife to give some biscuits or chocolates to his young child, who was asking too many questions––some very intelligent ones––on a variety of topics at a time. The purpose was simple: to keep the boy’s mouth chock-full, if not shut. This seems to be the strategy adopted by the Nitish Kumar government in Bihar.

बाहर से लड़ाई लड़ें बिहार के ईमानदार पत्रकार

संजयजीमेल पर चैट के दौरान पटना के एक विद्यार्थी अभिषेक आनंद से कहा – बिहार के मीडिया के बारे में बतायें। अभिषेक का जवाब था- क्या बताऊँ..पेपर पढ़ना छोड़ दिया कुछ दिनों से ऑनलाइन अखबार पढता हूँ, नीतीश जी भगवान हो गए हैं.. हर सुबह बड़ी बड़ी तस्वीरों से दर्शन होता हैं… और अंदर कहीं भी किसी भी पेज पर अगर कहूं कि सरकार के खिलाफ कोई आलोचना नहीं होती, तो आश्चर्य नहीं… लालू कहां गए पता नहीं। कोई नया विपक्ष कब आएगा पता नहीं, बिना विपक्ष के लोकतंत्र कि कल्पना आप कीजिये… मीडिया और सत्ता, खास कर बिहार में खेल जारी हैं… ऐसा बाहर के लोग ही नहीं, कई बिहारी भी ऐसा ही मानते हैं।

बिहार में प्रेस पर नीतीश का अघोषित सेंसर

फजल: सरकार के खिलाफ लिखने पर नौकरी जाने का डर : सरकारी भोंपू की तरह बज रहा है राज्‍य का मीडिया : बिहार में सब कुछ ठीक है। क़ानून-व्यस्था पटरी पर लौट आई है। विकास चप्पे-चप्पे पर बिखरा है और ख़ुशहाली से लोग बमबम हैं। यह मैं नहीं कह रहा हूं। बिहार के अख़बार और समाचार चैनलों से जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है उससे तो बस यही लग रहा है कि बिहार में इन दिनों विकास की धारा बह रही है और निजाम बदलते ही बिहार की तक़दीर बदल गई है।

Media’s double standards exposed in following rape stories in Bihar, UP

: Patna, (BiharTimes) : A very funny thing happened with television journalism in India on January 13. Several national channels took the Uttar Pradesh chief minister, Mayawati, to task for not expelling from the party the MLA arrested on the charge of raping a 17-year old girl belonging to the Nishad community, an extremely backward caste.

पत्रकारों की चार किताबों का नीतीश ने किया लोकार्पण

किताबपटना में सामूहिक रूप से तीन वरिष्ठ पत्रकार और एक कार्टूनिस्ट की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 27 दिसम्बर 2010 को वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान, पटना के वरिष्ठ संवाददाता श्रीकांत की पुस्तक ‘बिहार : राज और समाज’ तथा दैनिक हिन्दुस्तान के ही समन्वय संपादक अजय कुमार की पुस्तक ‘चुनाव : अथ बेताल कथा’ के साथ-साथ प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार/लेखक हेमंत की पुस्तक ‘इस देश में जो गंगा बहती है’ और हिन्दुस्तान पटना के कार्टूनिस्ट पवन की पुस्तक ‘कार्टूनों की दुनिया’ का लोकार्पण किया।