पुण्य प्रसून का ओजस्वी भाषण, यशवंत का मंत्री से दमदार सवाल

: पुण्य बोले- इस सभागार में उदयन शर्मा या एसपी या राजेन्द्र माथुर होते तो संपादकों के वक्तव्य सुनने के बाद उठकर चले जाते : यशवंत ने अंबिका सोनी के समक्ष स्ट्रिंगरों का मुद्दा उठाया- लाखों रुपये लेने वाले संपादकों नहीं देते अपने स्ट्रिंगरों को पैसे : मीडिया की दयनीय दशा का वर्णन करने वाला पंकज पचौरी का भाषण अंबिका सोनी को पसंद आया :

इन लेखों को पढ़कर कुछ सोचिए, कुछ कहिए

पुण्य प्रसून बाजपेयी और रवीश कुमार. ये दो ऐसे पत्रकार हैं जो मुद्दों के तह में जाकर सच को तलाशने की कोशिश करते हैं. इनके टीवी प्रोग्राम्स, लेखों के जरिए किसी मुद्दे के कई पक्ष जानने-समझने को मिलते हैं. आनंद प्रधान अपने लेखों के जरिए अपने समय के सबसे परेशानहाल लोगों की तरफ से आवाज उठाते हैं, सोचते हैं, लिखते हैं. तीनों का नाता मीडिया से है. पुण्य और रवीश टीवी जर्नलिज्म में सक्रिय हैं तो आनंद मीडिया शिक्षण में. इनके एक-एक लेख को उनके ब्लागों से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया जा रहा है. -एडिटर

खबरों का पीछा करता एक संपादक

पुण्य प्रसून बाजपेयीखबर को जब हाशिये पर ढकेलने की जद्दोजहद हो रही हो… खबरों को लेकर सौदेबाजी का माहौल जब संपादकों के कैबिन का हिस्सा बन रहा हो तब कोई संपादक खबर मिलते ही कुर्सी से उछल जाये और ट्रेनी से लेकर ब्यूरो चीफ तक को खबर से जोडऩे का न सिर्फ प्रयास करें बल्कि फोटोग्राफर से लेकर मशीनमैन और चपरासी तक को खबर को चाव से बताकर शानदार ले-आउट के साथ बेहतरीन हैडिंग तक की चर्चा करें तो कहा जा सकता है कि वह संपादक, संपादक नहीं जुनून पाल कर खबरों को जीने का आदी है। और यह जुनुन सरकारी रिटायमेंट की उम्र पार करने के बाद भी हो तब आप क्या कहेंगें. जी, एसएन विनोद ऐसे ही संपादक हैं।

‘नक्सल समस्या सामाजिक-आर्थिक मुद्दा नहीं’

ऐसा गृह मंत्रालय की एडवाइजरी में न्यूज चैनलों से कहा गया है : जितने कैमरे, जितनी ओबी वैन, जितने रिपोर्टर, जितना वक्त सानिया-शोएब निकाह को न्यूज चैनलों में दिया गया, उसका दसवां हिस्सा भी दंतेवाडा में नक्सली हमले को नहीं दिया गया। 6 अप्रैल की सुबह हुये हमले की खबर ब्रेक होने के 48 घंटे के दौर में भी नक्सली हमलों पर केन्द्रित खबर से इतर आएशा-शोएब के तलाक को हिन्दी के राष्ट्रीय न्यूज चैनलों ने ज्यादा महत्व दिया।

लाखों की सेलरी लेकर शीशे से दुनिया देखते हैं जर्नलिस्ट

अब जर्नलिस्टों की क्लास बदल गई है, खबर समझने के लिए इन्हें खुद को डी-क्लास करना होगा, आज तक चैनल छोड़ते वक्त एक्जिट नोट में लिखा था…”अच्छा काम करने गलत जगह जा रहा हूं”

पुण्य प्रसून वाजपेयी

हमारा हीरो 

पुण्य प्रसून वाजपेयी। जिनका नाम ही काफी है। समकालीन हिंदी मीडिया के कुछ चुनिंदा अच्छे पत्रकारों में से एक। कभी आज तक, कभी एनडीटीवी, कभी सहारा तो अब जी न्यूज के साथ।