[caption id="attachment_16038" align="alignleft"]पुण्य प्रसून बाजपेयी[/caption]धंधे में सीधे शिरकत करने वाला सफल मीडियाकर्मी! : मीडिया से कौन निकल कर कहेगा कि माई नेम इज गणेश शंकर विद्यार्थी और मैं पत्रकार नहीं हूं : लोकतंत्र के चार खम्भों में सिनेमा की कोई जगह है नहीं, लेकिन सिल्वर स्क्रीन की चकाचौंध सब पर भारी पड़ेगी यह किसने सोचा होगा। “माई नेम इज खान” के जरिये सिनेमायी धंधे के मुनाफे में राजनीति को अगर शाहरुख खान ने औजार बना लिया या राजनीति प्रचार तंत्र का सशक्त माध्यम बन गयी, तो यह एक दिन में नहीं हुआ है। एक-एक कर लोकतंत्र के ढ़हते खम्भों ने सिनेमा का ही आसरा लिया और खुद को सिनेमा बना डाला। 1998-99 में पहली बार बॉलीवुड के 27 कलाकारों ने रजनीति में सीधी शिरकत की। नौ बड़े कलाकारों से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने संपर्क साधा और उन्हें संसद में पहुंचाया, 62 कलाकारों ने चुनावी प्रचार में हिस्सा लिया। और, 2009 तक बॉलीवुड से जुड़े 200 से ज्यादा कलाकार ऐसे हो गये, जिनकी पहुंच-पकड़ अपने-अपने चहेते दलों के सबसे बड़े नेताओं के साथ भी सीधी हो गयी।