क्षमा करें, इसलिए ‘यादों में आलोक तोमर’ में नहीं आया

आलोक तोमर को चाहने वाले कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, डिप्टी स्पीकर हॉल-नई दिल्ली में एकत्रित हुए और मैं चाहते हुए भी उपस्थित नहीं हो सका। इस आयोजन की तारीफ तो नहीं करूंगा, क्योंकि हमारा, हम सबका फर्ज ही यही है कि कैंसर-ग्रस्त पत्रकारिता को बचाने के लिए आलोक तोमर को जिंदा रखा जाए, इसके बावजूद कि वह सदेह अब हमारे बीच नहीं रहे।

सोनिया मांग मान लेंगी और अन्ना का आंदोलन खत्म करा देंगी!

: देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए अन्ना के साथ खड़े हो जाएं : एक सज्जन कह रहे थे, देखना, सोनिया गांधी बहुत ऊंची राजनीतिज्ञ हैं। वह अन्ना हजारे की मांग मान लेंगी और उनका आंदोलन खत्म करा देंगी। मेरे मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि अगर मांगें मानकर आंदोलन खत्म कराना है, तो इसमें ऊंचा होना कहां हुआ? ऊंचे तो अन्ना हजारे ही साबित हुए, जिन्होंने कुंभकर्णों को अहसास करा दिया है कि भारत की जनता को निर्जीव मानने की भूल करोगे, तो पछताओगे।

रुला गया आलोक तोमर का यूं चले जाना

रविवार की सुबह जब पूरा उत्तर भारत होली के जश्न में डूबा था, ठीक तभी एक ऐसी खबर आई, जो समूचे पत्रकार जगत को शोक के काले रंग में भिगो गई। खबर यह थी कि वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह तो सही है कि जो व्यक्ति सफल होता है, उसके शत्रु भी होते हैं और मित्र भी। चूंकि प्रभाषजी के निधन के बाद आलोक ने मीडिया की शुचिता की मशाल भी अपने हाथों में थाम ली थी। अत: कुछ मीडिया घरानों व कुछ पत्रकारों को भी वे समय-समय पर आईना दिखाते रहते थे।