संघ की देन हैं बुखारी

[caption id="attachment_18345" align="alignleft" width="65"]सलीम अख्तर सिद्दीकीसलीम अख्तर सिद्दीकी[/caption]अहमद बुखारी अपने वालिद अब्दुल्ला बुखारी से चार कदम आगे निकल गए। पिछले सप्ताह उर्दू अखबार के एक सहाफी (पत्रकार) ने उनसे एक सवाल क्या कर लिया, वे न सिर्फ आग बबूला हो गए बल्कि सहाफी को ‘अपने अंदाज’ में सबक भी सिखाया। एक सहाफी को सरेआम पीटा गया, पर कहीं कोई खास हलचल नहीं हुई। होती भी क्यों।

क्या मेरठ में ‘हिन्दुस्तान’ दंगा कराके ही मानेगा!

सलीम अख्तर सिद्दीकी : दैनिक जागरण और अमर उजाला ने संयमित ढंग से खबर को प्रकाशित किया है : ऐसा लगता है ‘हिन्दुस्तान’ (मेरठ संस्करण) ने इस बात को ठान रखा है कि किसी हिन्दु और मुसलमान के बीच होने वाली आपसी एवं नितांत व्यक्तिगत झड़प को भी दो समुदायों के बीच झड़प बताना है। मेरठ का वैली बाजार हिन्दु-मुस्ल्मि एकता की मिसाल है। यहां पर दोनों ही समुदायों की दुकानें हैं। घटना कल 12 अक्टूबर की है। वैली बाजार में एक हिन्दु दुकानदार ने बंद पड़ी एक मुसलमान की दुकान के सामने अपना सामान लगा दिया। मुस्लिम दुकानदार ने अपनी दुकान के आगे सामान लगाने के लिए मना किया तो तूतू-मेंमें से होकर बात हाथापाई तक आ गयी। रात को ही दोनों के बीच समझौता भी हो गया। यह झगड़ा महज दो दुकानदारों के बीच का और व्यक्तिगत था। ‘हिन्दुस्तान’ ने इस खबर को ‘दुकानदारों में हाथापाई, दो समुदाय आमने-सामने, हंगामा’ शीर्षक के साथ सिंगल हैडिंग में और बॉक्स में प्रकाशित की है।

‘विधवा विलाप’ न करें : राहुल देव

: पसीना पोछता समाजवादी पत्रकार और एसी में जाते कारपोरेट जर्नलिस्ट : परिचर्चा ने बताया- फिलहाल बदलाव की गुंजाइश नहीं : जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा : कॉरपोरेट जगत अपनी मर्जी से मीडिया की दशा और दिशा तय करता रहेगा :