[caption id="attachment_18345" align="alignleft" width="65"]सलीम अख्तर सिद्दीकी[/caption]अहमद बुखारी अपने वालिद अब्दुल्ला बुखारी से चार कदम आगे निकल गए। पिछले सप्ताह उर्दू अखबार के एक सहाफी (पत्रकार) ने उनसे एक सवाल क्या कर लिया, वे न सिर्फ आग बबूला हो गए बल्कि सहाफी को ‘अपने अंदाज’ में सबक भी सिखाया। एक सहाफी को सरेआम पीटा गया, पर कहीं कोई खास हलचल नहीं हुई। होती भी क्यों।
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‘विधवा विलाप’ न करें : राहुल देव
: पसीना पोछता समाजवादी पत्रकार और एसी में जाते कारपोरेट जर्नलिस्ट : परिचर्चा ने बताया- फिलहाल बदलाव की गुंजाइश नहीं : जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा : कॉरपोरेट जगत अपनी मर्जी से मीडिया की दशा और दिशा तय करता रहेगा :
‘रण’ देख रोना आया, पैसे बर्बाद न करें
[caption id="attachment_16849" align="alignleft"]सलीम अख्तर सिद्दीकी[/caption]दोस्तों के साथ तीन दिन पहले तय पाया गया था कि सभी काम छोड़कर ‘रण’ फिल्म का पहला शो देखा जाएगा। ऐसा ही किया भी। ‘रण देखकर लौटा हूं। फटाफट आपको फिल्म की कहानी बता देता हूं। विजय हर्षवर्धन मलिक एक न्यूज चैनल ‘इंडिया 24’ चलाते हैं। आदर्शवादी पत्रकार हैं। चैनल घाटे में चल रहा है। टीआरपी बढ़ाने के लिए मलिक का बेटा जय विपक्ष के एक नेता, जो बाहुबली है, के साथ मिलकर एक साजिश रचते हैं। उस साजिश में देश के प्रधानमंत्री हुड्डा को एक शहर में हुए बम ब्लॉस्ट का साजिशकर्ता करार देती सीडी बनाई जाती है। यानि खबर क्रिएट की जाती है। हर्षवर्धन मलिक को सीडी दिखाई जाती है। मलिक को लगता है कि देशहित में ये खबर अपने चैनल पर चलाना जरुरी है। इंडिया 24 पर खबर चलती है। चुनाव में हुड्डा हार जाते हैं और विपक्ष का नेता जीत जाता है।
मगर मोदी को शर्म क्यों नहीं आती?
बी4एम पर उदय शंकर खवारे ने शेष नारायण सिंह के आलेख के जवाब में कहा है कि ‘सिंह साहब, शर्म तो आपको आनी चाहिए।‘ उदय शंकर जी, सिंह साहब को तो इस बात पर शर्म आती है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में नरेन्द्र मोदी नामक एक मुख्यमंत्री अपने मातृ संगठन आरएसएस के एजेंडे को परवान चढ़ाने के लिए गुजरात के हजारों मुसलमानों को ‘एक्शन का रिएक्शन’ बताकर मरवा देता है। बेकसूर नौजवानों को फर्जी एनकाउन्टर में मरवा डालता है और वह फिर भी मुख्यमंत्री बना रहता है। लेकिन दुनिया के धिक्कारने के बाद भी नरेन्द्र मोदी को शर्म नहीं आती। सही बात तो यह है कि नरेन्द्र मोदी को ‘मानवता के कत्ल’ के इल्जाम में जेल में डालना चाहिए। इशरत और उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया, इसकी पुष्टि तमांग जांच रिपोर्ट करती है। लेकिन जैसा होता आया है, मुसलमानों के कत्लेआम की किसी रिपोर्ट को संघ परिवार हमेशा से नकारता आया है। मुंबई दंगों की जस्टिस श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट को भी महाराष्ट्र सरकार ने डस्टबिन के हवाले कर दिया था।