बीबीसी हिंदी सेवा का बंद होना पत्रकारिता के लिए चुनौती

सुधांशुतमाम अटकलों को विराम लगाते हुए आख़िरकार बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने भारत में हिंदी भाषा में शॉर्टवेव के ज़रिए अपनी रेडियो सेवा को बंद करने का फ़ैसला किया है। यह फ़ैसला ब्रिटेन में उस दिन लिया गया, जब भारत गणतंत्र दिवस की ख़ुशियां मनाने में मग्न था। हालांकि इसके कयास काफ़ी पहले से लगाए जा रहे थे। हिंदी के अलावे, कैरिबियाई देशों के लिए अंग्रेज़ी प्रसारण, अफ़्रीका के लिए पुर्तगाली भाषा में प्रसारण, मैसेडोनियाई और अल्बानियाई और सर्बियाई सेवाएं भी बंद कर दी जाएंगी।

बरखा का झूठ बयां करती है ‘नो वन किल्‍ड जेसिका’

[caption id="attachment_19259" align="alignleft" width="79"]सुधांशुसुधांशु[/caption]जेसिका लाल की हत्या पर आधारित हाल में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में रानी मुख़र्जी बरखा दत्त का किरदार अदा कर रही हैं। फ़िल्म तथ्यों से कोसों दूर है। ऐसा लगता है कि फ़िल्म की पटकथा जेसिका लाल की हत्याकांड को नहीं, बल्कि बरख़ा दत्त के कैरेक्टर को ध्यान में रखकर लिखी गई है। फ़िल्म ऐसे समय में रिलीज़ हुई है, जब बरख़ा दत्त चारों तरफ़ से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई हैं। पूरी फ़िल्म जेसिका को नहीं, बल्कि बरख़ा दत्त और एनडीटीवी को समर्पित है।

क्या कर रहे हैं शशिशेखर?

सुधांशु चौहानइन दिनों दैनिक  ‘हिंदुस्तान’ अख़बार में अशुद्धियों की बाढ़ आ गई है। अख़बार का ऐसा कोई भी पन्ना नहीं होगा, जो अशुद्धियों से मुक्त हो। कुछ महीने पहले तक ये अशुद्धियां अंदर के पन्नों की स्टोरी के अंदर तक ही सिमटी थी, लेकिन अब ये फ़्रंट पेज की लीड स्टोरी तक आ पहुंची हैं। यहां तक की बोल्ड शीर्षकों से भी अशुद्धियां झांक रही हैं। आलम यह है कि आप जिस स्टोरी पर नज़र डालें, अशुद्धियों से बच नहीं सकते।

एसपी होते तो पत्रकारों के टेप चलते या धूल खाते?

[caption id="attachment_18649" align="alignleft" width="79"]सुधांशु चौहानसुधांशु चौहान[/caption]मुझे एसपी से मिलने या काम करने का अवसर कभी नहीं मिला, क्योंकि जब मैं धरती पर आया तबतक एसपी जा चुके थे। मैंने बस उन्हें तस्वीरों में देखा है और उनसे मुतल्लिक कई बातें सुनी हैं। जहां तक मुझे लगता है, उनके जाने के बाद न तो उनकी जगह कोई नहीं ले पाया और शायद कोई ले भी नहीं पाएगा।  एसपी के कुछ कट्टर विरोधी लोग भी मीडिया में हैं। उन्हीं में से किसी के मुंह से कुछ बातें सुनने के बाद लिखने को मजबूर हुआ।