“मां सुनाओ मुझे वो कहानी, जिसमें राजा न हो ना हो रानी… जो हमारी तुम्हारी कथा हो, जो सभी के दिलों की व्यथा हो… गंध जिसमें भरी हो धरा की, बात जिसमें न हो अप्सरा की… हो न परियां जहां आसमानी, मां सुनाओ मुझे वो कहानी।”…सिर्फ यही लाइने गूंज रही है। तबसे जबसे कि उन्होंने मुझे बाल वेश्यावृत्ति पर लिखने को कहा। एक ऐसी कहानी सुनाना जिसमें कहानी जैसा तो कुछ है भी नहीं। भला सूनी आंखों में सितारे झिलमिलाते दिखाई देंगे? अगर यही कन्ट्रास्ट नहीं बन पायेगा तो कहानी कैसे बनेगी? खैर..। विरोधाभास, उलझन, हताशा के बीच से शुरुआत ऐसे ही हो सकती है।
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हरित क्रान्ति का टूटता इन्द्रजाल
कुछ दिन पहले किसान यात्रा के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हरे-भरे खेतों को देखते हुए साथी किसान से क्षेत्र की समृद्धि की चर्चा की तो जो उत्तर मिला उसने हरित क्रान्ति के इन्द्रजाल को एक झटके से तोड़ दिया। किसान ने कहा था यह खेत हरे-भरे जरूर हैं लेकिन हकीकतन ये सभी फसल गिरवी पड़ी है। इस छोटे से जवाब ने बहुत सारे सवालों को जन्म दे दिया। आईये इसी सन्दर्भ में कृषक भारत के इतिहास की सबसे बड़ी घटना हरित क्रान्ति की पड़ताल करते हैं ।