बस कहें, क्षमा करें

ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि पत्रकार आपके खिलाफ सार्वजनिक तौर पर जो कुछ लिखते हैं, उसके लिए निजी तौर पर माफी मांग लेते हैं। मगर राडिया टेप मामला सामने आने के बाद आप ठीक इसके उलट यह बात कह सकते हैं कि कुछ पत्रकारों पर यह दबाव डाला जा रहा है कि उन्होंने निजी तौर पर जो कुछ किया या कहा, उसके बारे में वे सार्वजनिक तौर पर स्पष्टीकरण दें। वाइल्ड उन पत्रकारों की बात कर रहे थे जो ताकतवर लोगों के खिलाफ लिखते तो थे, मगर उनके साथ बेहतर संबंध बनाने की कोशिशों में जुटे रहते थे। मगर आज कुछ ऐसे बड़े पत्रकार देखने को मिल रहे हैं जो ताकतवर लोगों की तरफ से लिख रहे हैं या उनके लिए काम कर रहे हैं।

राडिया, मीडिया और भड़ास

अमिताभ: नीरा प्रकरण और वेब की दुनिया : आज नीरा राडिया प्रकरण में पत्रकारों की भूमिका को ले कर बहस खुद उसी टेलीविजन पर हुई है, जिस टीवी चैनल में उन महत्वपूर्ण नामों में से एक बरखा दत्त खुद एक प्रमुख स्तम्भ के रूप में काम करती रही है. यह कहानी आज से करीब छह महीने पहले मई में शुरू हुए थी. मुझे याद है मई महीने की शुरुआत में यहीं भड़ास पर मैंने पहली बार इस महान महिला नीरा जी का नाम सुना, जिन्हें आज इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है और आज जिनका नाम बड़े “सम्मान” के साथ लिया जा रहा है. उस समय किसी भी छोटे-बड़े समाचार-पत्र में कम से कम मैंने तो इस भद्र महिला का नाम नहीं देखा था.

राडिया रेडिएशन

रमेशपूरे पत्रकार जगत में आजकल नीरा राडिया का नाम रेडिएशन की तरह फ़ैल गया है. ख़ास करके दिल्ली के पत्रकार एक दूसरे से मजाक में ही सही, यह पूछना नहीं भूल रहे हैं कि डियर! तुमको भी राडिया ने फोन किया या नहीं? पूरा मामला एक उच्च स्तरीय महिला दलाल और सत्ता के गलियारों में उसकी घुसपैठ का है और कहने में गुरेज नहीं कि जिसे नीरा ने फोन किया और उनके टेप एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सार्वजनिक हो गए, वे अब खिसियाकर अपना खम्भा भूल दूसरे का खम्भा नोच रहे हैं. इस पूरे एपिसोड में और भी दिलचस्प यह है कि बहुत से लोग प्रवचन बघार रहे हैं, और ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अब तक नहीं फंसे.

मीडिया की नपुंसक संस्थाएं

अखिलेश जिस राडिया प्रकरण को लेकर देश दुनिया मे भारत की भद्द पिट रही है, उस प्रकरण को सरकार का भ्रष्टाचार माना जाये या मीडिया में अब तक का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार, क्योंकि इस राडिया प्रकरण ने भारतीय मीडिया और उसके बड़ी मूंछ वालों की कलई खोल दी है।  लेकिन शुक्र है राडिया प्रकरण की, जिसने यह भी साबित कर दिया है कि जिस बड़े पत्रकारों का नाम जप कर नए व पुराने मीडियाकर्मी अघाते नहीं थे, वे पूंछ उठने के बाद मादा निकल गए।

वीर, बरखा, राजदीप, प्रभु अपनी संपत्ति बताएं

: लोकतंत्र के चौथे खंभे (पत्रकारिता) को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने के संदर्भ में आरटीआई एक्टिविस्ट अफरोज आलम साहिल का एक खुला पत्र : सेवा में, महोदय, मैं अफ़रोज़ आलम साहिल। पत्रकार होने के साथ-साथ एक आरटीआई एक्टिविस्ट भी हूं। मैं कुछ कहना-मांगना चाहता हूं। मेरी मांग है कि लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी मीडिया को सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में लाया जाए। लोकतंत्र के पहले तीनों खंभे सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में आते हैं। यह कानून कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों पर लागू होता है। इसका मक़सद साफ है कि लोकतंत्र को मज़बूत किया जा सके।

मैंने अपने को इस देश का नागरिक मानना छोड़ दिया है

यश जी प्रणाम, टेप सुने, बरखा वीर के उत्तर पढ़े. ज्यादा कुछ कहने को है नहीं. बहुत बड़ा पेट है इस भीड़तंत्र का, ये मसला भी पचा लिया जायेगा. वैसे भी भोपाल गैस कांड पे आये अदालत के निर्णय के बाद से ही मैंने अपने को इस देश का नागरिक मानना छोड़ दिया है. देशभक्ति अब अपील नहीं करती. जीवन चल रहा है, चलता रहेगा, मौत आएगी आ जायेगी. ग़म और भी हैं, खुशियाँ और भी हैं, जीवन के आयाम और भी हैं.