प्रभु चावला की कहानी, विजेंदर त्यागी की जुबानी

एक दिन ‘सीधी बात’ वाले टेढ़े आदमी ने मुझे टेलीफोन किया. ”त्‍यागी जी मुझे आपसे एक व्‍यक्तिगत काम है”. मैंने पूछा- ”चावला जी, मुझसे ऐसा कौन सा काम आ पड़ा. आप तो पत्रिका के संपादक हैं और पत्रकारिता के स्‍टार यानी सितारे”. उनका जवाब था – ”मजाक छोडि़ये, मेरी आज मदद कीजिए. आपने पत्रकारों के सरकारी मकान जो खाली कराने का अभियान चलाया है उससे सभी संबंधित कागजात ले आएं”.