शराबी के प्रवचन पर अपुन का प्रवचन

: मृत्यु है क्या, जीवन का अंत, या प्रारंभ, या कि स्वयं शाश्वत जीवन? : हमारे रोने में एक आह थी, एक प्रार्थना थी, जो सभी ईश्वरों से थी : यश जी प्रणाम, आपका आलेख पढ़ा. पढ़ के आनंद हुआ. मैं ये कहूँगा कि दुःख स्थायी भाव नहीं है. सुख भी नहीं. कोई भाव स्थायी हो ही नहीं सकता. सिर्फ वे भाव जो हमारी कल्पना में हैं, वे ही हमारी प्रतीति में स्थायी हो सकते हैं.