आरएसए के खिलाफ खबरें इसलिए कि मिल सके मनमाफिक मकान

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लखनऊ। सीएम ने कई मीडिया संस्‍थानों और पत्रकारों की पोल तो अपने पीसी में खोल के रख दी है. इसके बाद से कई पत्रकार सहमे हुए हैं. ऐसा ही हाल कुछ महीने पहले लांच हुए एक अखबार के पत्रकार का भी है. वे भी सीएम के तेवर देखने के बाद तनिक सहमे हुए हैं. वैसे भी लखनऊ में पत्रकारों में लालबत्‍ती पाने की गलाकाट स्‍पर्धा रही है. एक दूसरे को निपटाने में भी ये लोग पीछे नहीं रहते हैं. सरकार से लाभ भी लेते हैं और आंखें भी तरेरते हैं, तभी तो सीएम की घुड़की के बावजूद किसी के चोंच नहीं खुले.

पचास रुपए में पांच महीने अखबार पढ़वाने वाले अखबार के एक मनीषी पत्रकार को सरकार ने आवास दे दिया है, लेकिन यह मनीषी पत्रकार इतने से संतुष्‍ट नहीं है. अब यह पत्रकार मनमाफिक आवास पाने के लिए पहले पन्‍ने पर आरएसए से जुड़ी खबरें छापकर दबाव बनाने का कोशिश कर रहा है. इसके पहले कुछ वरिष्‍ठ पत्रकारों का चिंटू बनकर आएसए के यहां एडि़या भी घिस चुका है. पर वीवीआईपी कालोनी में मकान पाने में सफलता नहीं मिली. हां, अब मीडिया के खिलाफ सीएम के तेवर देखने के बाद यह पत्रकार भी अब थोड़ी चिंतित दिखने लगा है. वैसे पता नहीं किस समझदार ने इस पत्रकार महोदय को सलाह दे दी थी कि राज्‍य सम्‍पत्ति विभाग के खिलाफ खबरें लिखो तो तुम्‍हें किसी वीवीआईपी कालोनी में मकान मिल जाएगा. तब से यह मनीषी पत्रकार इसी एक सूत्रीय कार्यक्रम में जुटा हुआ था.

फ्री की आदतें जाती नहीं इसलिए फ्री में मिली किसी की टिप्‍स के बाद यह पत्रकार अब वीवीआईपी कालोनी में मकान लेने को उत्‍सुक है. इनके कुछ आराध्य पत्रकार शहर की वीवीआईपी कालोनियों में रहते हैं, इसलिए इनकी भी कोशिश है कि उन्‍हें भी किसी ऐसी जगह मकान मिले, जिससे अपनी लेखनी से न सही लेकिन वीवीआईपी कालोनी में रहकर अपना रूतबा बता औन बना सके. मकान मान्यता मिलने के बाद भी वे अभी संतुष्ट नहीं है. स्वास्थ्य महकमे की लोकल रिपोर्टिंग के जरिए इस पत्रकार ने स्थानीय अस्पतालों में भले अपनी पहचान बना ली हो लेकिन नए बैनर में आने के बाद इस पत्रकार के सामने पहचान का संकट खड़ा हो चुका है.  

पहचान की इस संकट से निकलने के लिए ही यह अक्‍सर इलेक्टानिक और प्रिंट मीडिया के कुछ वरिष्‍ठों के पीछे जबरन पिछलग्गू बनकर घूमा करते हैं. पीछे घूमने का लाभ भी मान्‍यता और मकान के रूप में मिला, लेकिन संतुष्टि अब तक नहीं मिली. वैसे भी राज्य संपत्ति की अपनी मजबूरी है कि वे मंत्रियों विधायकों और दर्जा पाए राज्यमंत्रियों का मकान और गाड़ी बांटे या फिर मनीषी पत्रकार को ढूंढकर बढिय़ा मकान दे. बात मकान मिलने तक सीमित होती तो बेहतर होता उसके बाद उसमें सरकारी खर्चे पर मरम्‍मत और बेहतर से बेहतर रंगरोगन के लिए भी इस मनीषी पत्रकार को संघर्ष करना है इसलिए वह अपने कुछेक ऐसे लोगों का चिंटू बना हुआ है जिनकी पहुंच पंचम तल तक बताई जाती है. पर मीडिया के खिलाफ सीएम के तेवर देखने के बाद इनके तेवर भी बदले नजर आने लगे हैं. (कानाफूसी)

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