Nadim S. Akhter : निचली कोर्ट के फैसले पर जो लोग आरुषि के मां-बाप को गरिया रहे हैं, वे ठीक वहीं कर रहे हैं, जब आरुषि हत्याकांड के रोज टीवी चैनल वाले कर रहे थे. कइयों ने तो पैकेज चला दिए थे कि —देखिए, इस शैतान-हैवान राक्षस हेमराज को, जो घर में अकेली मासूम लड़की का कत्ल करके भाग गया. शायद उसका रेप भी किया. वगैरह-वगैरह.—
लेकिन चंद दिनों में असलियत कुछ और सामने आई. हेमराज कहीं भागा नहीं था, बल्कि वह भी मार दिया गया था. और फिर पूरी कहानी ही पलट गई. टीवी चैनल वाले अब हेमराज को 'पीड़ित पक्ष' बताने लगे.
सो भाईयों, ये जो फैसला है, सीबीआई वाला. ये ऊपरी अदालतों में टिक नहीं पाएगा. Circumstantial evidence की कोर्ट में अहमियत होती है लेकिन इतनी भी नहीं कि आरुषि जैसे चर्चित मामले में इसी के आधार पर मां-बाप को दोषी करार दे दे. वैसे भी सीबीआई की थ्योरी थोथली है. उसमें वजन नहीं लगता. वे कातिल हो भी सकते हैं और नहीं भी. लेकिन सिर्फ शक के आधार पर मां-बाप को गुनाहगार नहीं ठहराया जा सकता.
अतः गुरुवरों से अपील है कि कृपया आरुषि मामले में थोड़ा ठंड रखें. उसके मां-बाप को गाली देना और अपशब्द कहना बंद करें. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा. जब इतने साल इंतजार किया है तो थोड़े साल और रुक जाएं. लेकिन साक्ष्यों के साथ इतनी लापरवाही पुलिस ने बरती है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी ऐतिहासिक टाइप का ही होगा, इसकी पूरी उम्मीद है.
आरुषि हत्याकांड भारतीय लोकतंत्र और पुलिस तंत्र के लिए एक केस स्टडी बन गया है अब. भावी पीढ़ियां इसका उदाहरण देकर या तो हम पर हंसेंगी, दुत्कारेंगी या फिर ये कहेंगी कि हां, हम लोगों ने समय रहते इससे सबक ले लिया और उन्हें शर्मिंदा होने से बचा लिया.
दरअसल आरुषि एक नहीं, कई हैं. हम सब के बीच. रोज हम उन्हें देखते हैं और इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हैं. अगर तलवार दंपती वाली आरुषि से आपको सचमुच सहानुभूति है और उसका दर्द आप महसूस कर रहे हैं तो आपके पास मौका है. कई आरुषियों को बचाने का. उनकी मदद करने का. वो कीजिए. नेक काम है. पुण्य भी मिलेगा और दिल को सुकून भी. फेसबुक पर आरुषि के मां-बाप को गरियाने से कुछ नहीं मिलने वाला. किसी और की भड़ास क्यों आरुषि के मां-बाप पर निकाल रहे हैं?!
पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.