लखनऊ। सौ-सौ जूते खाकर भी लखनऊ की मीडिया घुसकर तमाशा देखने से बाज नहीं आ रही है। दिन था शुक्रवार और तारीख थी 10 जनवरी 2014 और समय था शाम तीन बजे। मुख्यमंत्री आवास के लॉन में लाइन से सजी थी कुर्सियां। प्रेस कांफ्रेस में बुलाए गए पत्रकार समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उन्हें किस लिए बुलाया गया। जब सीएम अखिलेश यादव ने बोलना शुरू किया तो लोगों को लगा कि आज मीडिया पर भड़ास निकालने के लिए बुलाया गया है।
सैफई महोत्सव को लेकर अखबारों में छप रही और टीवी चैनलों पर दिखाई जा खबरों से सीएम काफी आहत थे। उन्होंने संबंधित अखबार का नाम लेते हुए कहा कि इस बार उनके मालिक को राज्यसभा नहीं भेजा गया तो इस तरह की खबरें छापी जा रही है। सीएम अखिलेश यादव ने इस अखबार के मालिक के बारे में यह भी खुलासा किया कि जब जुआ खेलते पकड़े गए थे और पुलिस की लाठियां उन पर टूटी थी तब मौके पर हास्पिटल न पहुंचाया जाता तो न जाने क्या हो जाता।
सीएम के इतना कहने के बाद मीडिया के लोग एक-दूसरे की शक्लें देखने लगे कोई समझ नहीं पा रहा था कि किसके लिए कहा जा रहा है। इतने में सीएम ने दैनिक जागरण का उल्लेख कर दिया कहा कि उसने लिखा है कि सैफई महोत्सव में तीन सौ करोड़ खर्च हुए है। जबकि हकीकत यह है कि दस करोड़ से ज्यादा नहीं खर्च हुआ है।
इसी के साथ सीएम ने एक इलेक्ट्रानिक चैनल के संवादददाता का नाम लिए बिना कहा कि उसके संवाददाता साल भर पहले उनके साथ आधे घंटे हवाई जहाज पर घूमे इंटरव्यू लिया। जब प्रसारण के बारे में पूछा तो तकनीकी बहाना बताकर इंटरव्यू के प्रसारण से मना कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि जिस चैनल और रिपोर्टर की बात हो रही है वो इस समय प्रेस कांफ्रेस में मौजूद भी है।
जिक्र हो ही रहा था कि संबंधित इलेक्ट्रानिक चैनल के रिपोर्टर अपनी चिरपरिचित सवाल पूछने लग गए। इस पर सीएम ने उस रिपोर्टर से कहा कि एसएमएस से सवाल पूछ लेना जवाब मिल जाएगा। यह तो हो गई सीएम की प्रेस कांफ्रेंस की बात। अब बात अपने साथी पत्रकारों की। सीएम से इतनी खरी खोटी सुनने के बाद मीडियाकर्मियों का जब पेट नहीं भरा तो बैगैरतों की तरह नाश्ते पर भूखे नंगों की तरह टूट पड़े।
जबकि पत्रकारों के साथ चाय-नाश्ते में न तो सीएम साहब शामिल थे न ही उनका कोई मंत्री। नाश्ते के लिए सब ऐसे एक-दूसरे पर टूट रहे थे मानों भिखारियों को कंबल बट रहे हैं। जो लोग चाय-नाश्ते पर टूटे थे उनका कहना था कि सीएम साहब ने हमारे बारे में तो नहीं कहा कि जो हम कुछ खाए-पिए ना।
माना जा रहा है जिस तरह मुख्यमंत्री एक-एक करके मीडियाकर्मियों को उनकी करतूतें बता रहे हैं तो जल्द ही एक बड़े चैनल के उस संवाददाता का भी खुलासा हो सकता है, जो गे क्लब का सक्रिय मेम्बर है और राजनाथ की सरकार में इसके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई थी लेकिन मीडियाकर्मियों के दबाव में मामला रफा-दफा हो गया था। इसी चैनल के अंग्रेजी संस्करण के संवाददाता को पिछले दिनों सीएम ने भरी प्रेस कांफ्रेस में पीछे जाकर बैठ जाने का कहा था। यही नहीं हाल ही में जो सूचना आयुक्त बनाए गए है उनमें किसने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है और किस हद तक गिरा है इसका सपा मुख्यालय या किसी प्रेस कांफ्रेंस में न हो जाए तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। (साभार : एनडीएस)