कभी सहारा समय के ब्यूरो चीफ, कभी इंडिया टीवी में रजत शर्मा के ख़ासम ख़ास रहे, और लाइव इंडिया में एक टीचर का फर्ज़ी स्टिंग चलाकर और अपने एक बेहद जूनियर के सिर सारा इल्ज़ाम जड़ कर, उसको जेल भिजवा कर सरकार के हाथों पहली बार एक चैनल को बैन कराने का रिकार्ड बना चुके सुधीर चौधरी अपने पुराने संस्थान ज़ी न्यूज़ दोबारा क्या गये कि उनके जेल जाने का परवाना ही तैयार हो गया.
अभी ख़बर सुनी कि ख़बर दिखाने और रोकने के नाम पर 100 करोड़ की ब्लैकमेलिंग के आरोप में दिल्ली पुलिस ने उनको धर दबोचा. भारतीय मीडिया के लिए इससे बुरी कोई ख़बर नहीं हो सकती, इसको अगर भारतीय पत्रकार जगत के लिए काला दिन कहा जाए तो ग़लत ना होगा. लेकिन अगर तस्वीर के दूसरे पहलू पर नज़र डालें तो जो कुछ हुआ…..देर से और अधूरा हुआ. कई लोगों का मानना है कि सुधीर चौधरी और आहलूवालिया ने जो किया वो उनके लिए कोई नया नहीं था. साथ ही क्या इस पूरी ब्लैकमेंलिग में सिर्फ ये दो ही नाम शामिल थे..?
सुधीर चौधरी की गिरफ्तारी की ख़बर के बाद अचानक कई बातें याद आ गई… कि लगने लगा इनको भी कह डाला जाए. सुधीर चौधरी को उसी दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है जिसको ये बहुत ही मामूली मानते थे. 2005 की घटना है धौला कुंआ रेप केस जैसे बहुचर्चित मामले में भी रिपोर्टर्स मीटिंग के दौरान रिपोर्टरों पर दबाव बनाने की कोशिश होती थी, कि या तो ये बताओ रेपिस्ट कौन है या विक्टिम का वन टू वन लाओ. भले ही सुधीर चौधरी ने फील्ड से कभी कोई स्टोरी या रिपोर्टिंग ना की हो मगर अपने गुरु घंटाल की तरह अदालत सजा कर जब ये स्टूडियो में बैठते तो दुनिया का सबसे बड़ा पत्रकार समझने से इनको कोई रोक ही नहीं सकता था.
इतना ही नहीं अगर दिल्ली पुलिस से मिली कोई जानकारी रिपोर्टर देना चाहता था तो इनका कहना होता था कि पुलिस का समोसा खाते हो ना? चूंकि अब लगने लगा है कि ख़ुद इनको नेताओं की दलाली और मोटा माल खाने का शौक़ था… इसीलिए इन्होंने टीम भी ऐसी ही बनाई. जिसने कभी रिपोर्टिगं के नाम पर आर भी ना सीखा हो मगर सुधीर जी को ख़ुश रखना उसने सीख लिया, किस नेता से क्या बाइट लानी है, और क्या चलानी है, तो भला उसकी तरक़्क़ी और मौज को कौन रोक सकता था. लेकिन अफसोस आज बेचारे अकेले जेल चले गये, जिनको आउट ऑफ वे प्रमोट किया, वो बचाने के लिए कहीं नज़र नहीं आ रहे, जिनको डुबोया उन्होंने ही इनकी सोने की लंका में हनुमान जी वाला काम कर दिया.
जी न्यूज से मामूली पत्रकार की हैसियत करियर शुरु करने के बाद आज करोड़ों का मालिक होना भी कोई इन्ही से सीखे. हां, एक बात और अभी अभी फेसबुक एक और संपादक जी ने सुधीर चौधरी की गिरफ्तारी पर ख़ुशी ज़ाहिर की है और कहा है कि अगर ये गिरफ्तारी ना होती तो उनको अफसोस होता, लेकिन जनाब संपादक महोदय… ये तो भला हो भड़ास जैसी कई सोशल मीडिया साइटों का जिन्होंने सुधीर चौधरी और जी न्यूज की ब्लैकमेल की दबी हुई कहानी को उजागर किया और मीडिया की मजबूरी बनी कि इसको दिखाया भी जाए और इसकी जांच भी की जाए. लेकिन एक नेशनल न्यूज चैनल के ये बेचारे संपादक महोदय अपनी और अपनी टीम की करततू को फिलहाल शायद भूले बैठे हैं. जब मेरठ में होने वाले एक बड़े और हाइप्रोफाइल हत्या कांड में इनकी टीम पर करोड़ों की उगाही करके आरोपियों को मदद पहुंचाने के आरोप लगे थे. मगर इन्हीं साहब ने सुधीर चौधरी की तरह ख़ुद को बचाने के लिए एक छोटे प्यादे की बलि चढा़ दी थी और आज नैतिकता की दुहाई देते नहीं थकते.
इसके अलावा सुधीर चौधरी के खिलाफ शिकायत करने वाली पार्टी भी इतनी भारी थी कि इसमें कार्रवाई होना तय था ही. नहीं तो कई मामलों पर कुछ चैनलों की ख़ामोशी सबके सामने ही है…..बहरहाल सुधीर चौधरी से हमें पूरी हमदर्दी है. हो सकता है कि जेल से आने के बाद फिर से कोई चैनल उनको अपने यहां सेवा का मौका दे दे. या वो अपना ही चैनल ले आएं और फिर इतने होनहार और कमाऊ पत्रकार को कौन नहीं चाहेगा. ये भी सच है कि एक पत्रकार होने के नाते उन्होंने जो कुछ योगदान दिया, वो भारतीय मीडिया के लिए एक मील का पत्थर होगा. उनकी मिसाल सुनकर करप्ट और दलाल टाइप के बचे कई लोग ज़रूर सबक़ लेंगे. हां ये अलग बात है कि हो सकता है कि अब और सतर्क होकर मामले तय किये जाने लगें. इतना ज़रूर है कि कभी कॉफी हाउस में कॉफी तक के पैसे ना दे पाने की हैसियत रखने वाले कई पत्रकारों के मौजूदा एंम्पायर को देखकर लगता है कि सब जगह के करप्शन खुल चुके हैं…बस अब तो मीडिया के करप्ट लोग भी बेनक़ाब हो तो देश और समाज का भला हो सकता है.
लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं. सुधीर चौधरी के कार्यकाल में सहारा और इंडिया टीवी में काम कर चुके हैं.
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