एनसीटीसी के मुद्दे पर गैर-कांग्रेसी सरकारें फिर ठानेंगी रार!

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आतंकवाद से निपटने के तौर-तरीकों पर राजनीतिक खींचतान बढ़ने लगी है। हैदराबाद में हुए आतंकी विस्फोटों के बाद केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बहुविवादित राष्ट्रीय आतंक निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) का सुर्रा एक बार फिर छोड़ दिया है। इसको लेकर कांग्रेस के कई नेताओं ने तेजी से लॉबिंग भी शुरू कर दी है। केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने एक दौर में इस योजना को लागू कराने की खास पहल की थी। लेकिन, गैर-कांग्रेसी राज्यों की सरकारों ने इसका भारी विरोध किया था। इस राजनीतिक पंगे के चलते यह योजना लंबित हो गई थी। अब इसको लेकर फिर नए सिरे से पहल हो रही है। इस पर विपक्षी दलों ने एकबार फिर लामबंदी शुरू की है।

गुरुवार को हैदराबाद के दिलसुखनगर में दो आतंकी विस्फोट किए गए थे। इनमें 16 लोग मारे गए हैं। जबकि, 100 से ज्यादा घायलों का इलाज चल रहा है। इस मामले की पड़ताल खास तौर पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपी गई है। केंद्रीय खुफिया एजेंसियां भी जांच में मदद कर रही हैं। अब तक की पड़ताल से साफ हुआ है कि इस वारदात के पीछे आतंकी संगठन ‘इंडियन मुजाहिदीन’ की खास भूमिका है। इसी संगठन के पांच गुर्गों ने दो साइकिलों में बम प्लांट किए थे। सीसीटीवी की फुटेज में साइकिल ले जाते हुए एक संदिग्ध की तस्वीर भी देखी गई है। विस्फोट होने के महज 20 मिनट पहले यह शख्स घटनास्थल के पास साइकिल ले जाते हुए दिखाई पड़ा था। शक है कि यही शख्स पिछले साल पुणे में हुए बम-ब्लास्ट की घटना से भी जुड़ा था।

खुफिया सूत्रों के अनुसार, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तिहाड़ जेल में बंद 50 आतंकियों की फाइलें दोबारा खंगालनी शुरू की हैं। पुणे में हुए आतंकी विस्फोट के मामले में सैयद मकबूल और इमरान को पिछले साल अक्टूबर में पकड़ा गया था। ये दोनों तिहाड़ में बंद हैं। सूत्रों के अनुसार, स्पेशल सेल को मकबूल से कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं। पता चला है कि इमरान के कुछ गुर्गों ने दिलसुखनगर की रेकी की थी। इसका वीडियो भी बनाया गया था। रेकी के इस वीडियो को आतंकियों के आकाओं ने मुजफ्फराबाद (पीओके) में देखा था। इसी के बाद विस्फोट की साजिश तैयार की गई।
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अनौपचारिक बातचीत में जानकारी दी कि हैदराबाद कांड में ‘इंडियन मुजाहिदीन’ की भूमिका के पक्के सबूत मिल रहे हैं। जल्द ही इस संगठन के गुनहगारों को दबोचने की तैयारी चल रही है। लेकिन, दिक्कत यह है कि इस संगठन के ‘स्लीपर सेल’ अलग-अलग राज्यों से अपना आॅपरेशन चलाते हैं। ऐसे में, दिल्ली से इन पर सीधे कानूनी कार्रवाई करने में कई तरह की मुश्किलें आ रही हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे ने शुक्रवार को हैदराबाद में घटनास्थल का दौरा किया था। इसके बाद इन्होंने संसद के दोनों सदनों में अपना बयान दिया था। संसद में शिंदे ने इस बात पर खास जोर दिया कि आतंकवाद से निपटने के लिए ‘एनसीटीसी’ को लागू करने की खास जरूरत है। क्योंकि, ऐसी किसी राष्ट्रीय व्यवस्था के अभाव में आतंकवाद निरोधी कारगर कार्रवाई में कई तरह की व्यवहारिक दिक्कतें आती हैं। गृहमंत्री ने मीडिया से अनौपचारिक बातचीत में कहा है कि हैदराबाद की घटना के बाद जरूरी हो गया है कि आतंकवाद के खिलाफ प्रणालीगत कानूनी शिकंजा कसा जाए। इसके लिए ‘एनसीटीसी’ के गठन के मामले में राजनीतिक आम सहमति का रास्ता निकालना और जरूरी हो गया है।

दरअसल, नवंबर 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमले के बाद ‘एनसीटीसी’ के गठन का प्रस्ताव तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने किया था। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। लेकिन, ऐन मौके पर कई राज्यों की सरकारों ने इसका जोरदार विरोध कर दिया था। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे कड़ा विरोध किया था। उन्होंने कहा कि इस तरह का सेंटर बनाने की व्यवस्था से संविधान द्वारा दिए गए राज्यों के अधिकारों में केंद्र का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा। इस तरह का प्रस्ताव देश के संघीय ढांचे की भावना के एकदम विपरीत होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने सरकार की इस पहल का विरोध कर दिया था।

गैर-कांग्रेसी सरकारों की लामबंदी के चलते ही केंद्र सरकार ने अपनी इस पहल को थाम लिया था। पिछले साल प्रणब मुखर्जी के ‘महामहिम’ बनने से चिदंबरम को गृहमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। उन्हें वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। गृहमंत्री पद से चिदंबरम की विदाई के बाद ‘एनसीटीसी’ का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। सूत्रों के अनुसार, हैदराबाद के आतंकी-विस्फोटों के कुछ पहले ही चिदंबरम ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को इस संदर्भ में एक पत्र भेजा है। इसमें वित्त मंत्री ने लिखा है कि आतंकवाद की बढ़ती चुनौती का सामना करने के लिए जरूरी हो गया है कि ‘एनसीटीसी’ को जल्द से जल्द लागू किया जाए। चिदंबरम ने प्रधानमंत्री से यह अनुरोध खास तौर पर सीमा पार के आतंकी आकाओं के ताजा अल्टीमेटम के बाद किया था।

हैदराबाद विस्फोट कांड के बाद गृहमंत्री शिंदे भी अब ‘एनसीटीसी’ योजना को लागू कराना चाहते हैं। वे सवाल कर रहे हैं कि एक तरफ भाजपा नेतृत्व यह कह रहा है कि आतंकवाद के मुद्दे पर केंद्र सरकार का रवैया नरम है, जबकि दूसरी तरफ वह केंद्र की आतंकरोधी पहल ‘एनसीटीसी’ के गठन का विरोध कर रहा है। यह हैरान करने वाली बात है। गृहमंत्री ने उम्मीद जाहिर की है कि इस मुद्दे पर संसद सत्र के बीच में ही वे राजनीतिक आम सहमति बनाने की सफल पहल कर लेंगे। राज्यों की जो भी आशंकाएं होंगी, उनके बारे में समझदारी बनाई जा सकती है। दरअसल, चिदंबरम अमेरिकी आतंकवाद निरोधी कानून की तरह ‘एनसीटीसी’ को यहां लागू कराना चाहते हैं। वे गृहमंत्री की जिम्मेदारी नहीं संभाल रहे, फिर भी अपने इस ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ को जल्द से जल्द लागू कराना चाहते हैं। हैदराबाद कांड ने वित्तमंत्री को इस पहल का एक बेहतरीन मौका भी दे दिया है।

शिंदे चाहते हैं कि ‘एनसीटीसी’ के गठन के साथ नेटग्रिड (नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड) का भी गठन हो जाए। क्योंकि, इस देशव्यापी संचार ग्रिड के जरिए देशभर के पुलिस थानों का नेटवर्क जुड़ जाएगा। ऐसे में, सूचनाएं भेजने में वक्त नहीं लगेगा। क्योंकि, कार्रवाई में देरी का ही फायदा आतंकी तत्व अक्सर उठा लेते हैं। खुफिया एजेंसियों की सूचनाएं भी कई बार समय से सही जगह नहीं पहुंच पातीं। लेकिन, इस ग्रिड को लेकर भी कई राज्यों को आशंकाएं रही हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के पूर्व प्रमुख ए.के. डोवाल कहते हैं कि ‘एनसीटीसी’ और नेटग्रिड को लेकर राज्यों को अड़ियल रुख नहीं अपनाना चाहिए। वैसे भी आतंकवाद को लेकर वोटबैंक की राजनीति से परहेज रखा जाए, यही राष्ट्रहित में रहेगा। डोवाल का मानना है कि ‘एनसीटीसी’ कार्यक्रम को अब जल्द से जल्द लागू करने की दिशा में बढ़ने की जरूरत है।

भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर का मानना है कि आतंकवाद के मुद्दे पर जब केंद्र सरकार का गला फंसता है, तो वह हमेशा अपनी नाकामी की टोपी राज्यों की तरफ बढ़ाने लगती है। यूपीए सरकार की यह कार्यशैली बहुत पहले से चली आ रही है। जावड़ेकर कहते हैं कि मुंबई के आतंकी हमले के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में 11 बड़ी आतंकी वारदातें हो चुकी हैं। हर ऐसी वारदात के बाद यूपीए सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन वोटबैंक की राजनीति के चलते वह जरूरी कार्रवाई नहीं करती। कारगर कार्रवाई के नाम पर ‘एनसीटीसी’ जैसी विवादित योजनाओं को लागू करने की गुहार की जाती है। जबकि, इस मामले पर पहले भी तमाम बहस हो चुकी है। इस योजना के कुछ ऐसे प्रावधान है, जिनसे कि राज्यों के अधिकारों पर सीधे तौर से केंद्र का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा। यह प्रस्ताव एक तरह से संविधान की भावना के एकदम विपरीत है। अच्छा यही रहेगा कि केंद्र, विवाद के मुद्दे न उछाले और आतंकवाद से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए।

लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क virendrasengarnoida@gmail.com के जरिए किया जा सकता है।

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