जुलाई का दूसरा और तीसरा सप्ताह- आजतक स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम के एडीटर दीपक शर्मा को उत्तर प्रदेश सरकार और भारत सरकार के सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय के बीच एनजीओ डॉ. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट के सरकारी फंड में हुई अनियमितताओं को लेकर पत्राचार की जानकारी मिली.
जुलाई 31- दीपक शर्मा ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लेकर उत्तर प्रदेश का दौरा किया और एनजीओ की जांच के लिए अपने साथ एक स्पाई कैमरा लेकर गए.
अगस्त 5- दीपक शर्मा और उनके साथी अरुण सिंह दोबारा उत्तर प्रदेश के दौरे पर गए और सूत्रों से मिलने के लिए सबसे पहले अलीगढ़ पहुंचे.
अगस्त 6- एटा जिला विकलांग कल्याण विभाग के दौरे में एक चपरासी के जरिए विकलांग लाभार्थियों को जाली हस्ताक्षर से उपकरण बांटने की बात सामने आई. रिपोर्ट चपरासी को लौटा दिया गया और उन कागजों की फोटोकॉपी निकाल ली गई. मैनपुरी के जिला अधिकारियों ने स्पाई कैमरे पर अनियमिताओं की बात स्वीकार की.
अगस्त 7- फर्रुखाबाद में रिपोर्टर पहुंचे. स्पाई कैमरे में अधिकारियों ने कहा कि उन्हें कैंप के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी.
अगस्त 8- लखनऊ में जिला कल्याण निदेशालय के उप निदेशक अखिलेंद्र कुमार ने स्पाईकैम में जाली हस्ताक्षरों की शिकायतों पर बातचीत की जो कि ट्रस्ट की प्रोजेक्ट निदेशक लुईस खुर्शीद द्वारा सामाजिक न्याय और आधिकारिकता मंत्रालय को सौंपी गई थी. उन्होंने भारत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में इन जाली हस्ताक्षरों की जांच के बारे में बताया. उत्तर प्रदेश के विकलांग कल्याण के निदेशक द्वारा राज्य सरकार के विशेष सचिव को 12 जनवरी 2012 को एक पत्र लिखा गया जिसमें जाली हस्ताक्षरों का आरोप लगाया गया था. उस पत्र में लिखा गया था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 17 जिलों के चेकलिस्ट में हस्ताक्षरों का सत्यापन किया जिनमें से 10 जिलों की चेकलिस्ट पर हस्ताक्षरों को जाली पाया. इस पत्र ने ट्रस्ट की ओर से किए जा रहे कार्यों पर संदेह खड़ा कर दिया.
अगस्त 9- रिपोर्टर कयामगंज में लाभार्थियों को खोजने के लिए पहुंचे जिन्हें कि उपकरण बांटे गए थे. उस चेकलिस्ट में एक रंगी मिस्त्री था जिसकी क्रम संख्या 29 थी. यह पितुआरा गांव से था. रंगी मिस्त्री ने कहा कि उसे कान की कोई मशीन मिली ही नहीं. जबकि चेकलिस्ट में उस व्यक्ति का नाम था और लिस्ट के मुताबिक उसे उपकरण दिया गया था. रिपोर्टर ऐसे ही अन्य लाभार्थियों की तलाश करने गांव गया लेकिन गांव वालों ने बताया कि उन नामों में गांव में कोई है ही नहीं.
रिपोर्टर फिर एटा जिले में पहुंचे और पाया क्रम संख्या 1 में 36 वर्षीय राम गोपाल नाम का व्यक्ति दरअसल एक स्कूल जाने वाला बच्चा है. उस बच्चे ने बताया कि उसे कोई व्हीलचेयर मिली ही नहीं है लेकिन उस चेकलिस्ट के मुताबिक रामगोपाल को व्हीलचेयर दी गई है. श्याम सिंह सहित ऐसे कई लाभार्थी इस जिले में मिले जिन्हें कोई उपकरण या व्हीलचेयर मिला ही नहीं था लेकिन उस लिस्ट में उनका नाम था.
अगस्त 14- इस स्पाईकैम ऑपरेशन में सामाजिक न्याय और आधिकारिकता मंत्रालय के अंडरसेक्रेट्री आर.पी पुरी ने कहा कि डॉ जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट को ब्लैकलिस्ट कर देना चाहिए. यह कोई छोटा एनजीओ होता तो बात समझ में आती लेकिन यह प्रभावशाली राजनीतिज्ञों की एनजीओ है. इन अनियमितताओं के बारे में पता चलने पर सरकार की ओर से अनुदान बंद कर दिया गया. मंत्री के संज्ञान में पूरा मामला था अब यह उनपर निर्भर करता है वह एनजीओ को ब्लैकलिस्ट करना चाहते हैं या नहीं.
अगस्त का दूसरा और तीसरा सप्ताह- इस रिपोर्ट को तैयार किया गया और इसका संपादन किया गया.
सितंबर 8- जब पूरी रिपोर्ट को तैयार कर लिया गया तो ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में सलमान खुर्शीद को एक प्रश्नावली भेजी गई:
*ट्रस्ट को वर्ष 2009-10 में 71,50,000 रुपयों का अनुदान एडीआईपी स्कीम के लिए दिया गया. रिपोर्ट को तैयार करते हुए ट्रस्ट ने जाली हस्ताक्षर किए.
*चेकलिस्ट में उन लाभार्थियों के नाम है जो कि काल्पनिक है और कुछ को सहायता मिली ही नहीं.
*वर्ष 2009-2010 के इस धांधली के बाद दोबारा 68,00,000 रुपयों का अनुदान दिया गया था. (आजतक)