कभी-कभी बड़े लोग भी ओछी एवं बचकानी हरकत कर देते है और अपनी छीछालेदर करवाते है. इसका ताजा उदहारण प्रेस कन्सिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू है. 19 अक्टूबर को पटना में एक पुस्तक विमोचन समारोह में उन्होंने बिहार सरकार और नितीश कुमार के बारे में जो भी कहा, हो सकता है वह सही हो, लेकिन वह मौका सही नहीं था. उनका भाषण बेमौसम की शहनाई की तरह लगा.
बोलते समय न तो उन्होंने पीसीआई के अध्यक्ष पद की मर्यादा का ख्याल रखा, न सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पद की गरिमा का. फिसले तो बस फिसलते ही चले गए. और अपनी भद्द पिटवाई. जिस कार्यक्रम में वो बोल रहे थे वह एक कोचिंग संस्थान का कार्यक्रम था. काफी छात्र, अभिभावक और बुद्धिजीवी मौजूद थे. लोगो को उम्मीद थी कि वे शिक्षा पर बोलेंगे, लेकिन काटजू साहब तो अलबेले है. वे विपक्ष के नेता की तरह लगे नितीश कुमार की खाट खड़ी करने. ऐसे कार्यक्रम में अगर कोई विपक्षी नेता भी होता तो ऐसा भाषण नहीं करता. छात्रों को कुछ सीख देने के बजाये वे बिना किसी आधार के
आईआईटी की आलोचना करने लगे. शायद इसीलिये कहा जाता है कि बुढ़ापे में लोग सठिया जाते है. मेरा यह निश्चित मत है कि काटजू साहब ने पीसीआई के अध्यक्ष पद की गरिमा गिराई है. अतः उन्हें त्यागपत्र देना चाहिए.
प्रवीण बागी
पत्रकार, पटना
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