यूपी के गाजीपुर जनपद में इन दिनों खाकी वर्दी खिसियानी बिल्ली की तर्ज पर चौथे स्तम्भ पर पंजा मारने में लगी है। कई पत्रकार अपने साथ हुए हादसों-घटनाओं की जानकारी जब थानों पर देते हैं, तो पुलिस उनसे अपराधियों सा सुलूक करने पर आमादा हो जाती है। तीन माह में यहां के तकरीबन 3-4 पत्रकारों पर पुलिस मुकदमा दर्ज कर चुकी है, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि आजकल पुलिस का खौफ पत्रकारों पर अधिक, अपराधियों पर कम है।
ज्ञात हो कि कासिमाबाद पुलिस, करीमुद्दीनपुर पुलिस, सुहवल पुलिस तथा मरदह पुलिस ने अपने अपने क्षेत्र के एक-एक संवाददाओं पर मुकदमा दर्ज कर दिया है। हर मामले में संवाददाताओं के साथ अन्याय हुआ। मामला जनपद के पुलिस कप्तान विजय गर्ग के सामने गया। जनपद में मौजूद पत्रकार संगठनों का प्रतिनिधिमंडल एसपी से कई चक्र वार्ता कर चुका है। लेकिन किसी थानाध्यक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अखबारों में संवाददाताओं के साथ हुए दुर्व्यवहार की खबरें प्रकाशित हो चुकी है। बावजूद इसके अफसरों का संज्ञान न लेना इस बात को प्रदर्शित करता है कि पुलिस जनपद में ''पत्रकार मिटाओ अभियान'' चला रही है।
हद तो यह है कि भांग के ठेकों से महीना लेने वाली, पशु तस्करी के धंधे में सहयोगी की भूमिका में रही पुलिस के निशाने पर यहां के पत्रकार इसलिए हैं कि इन्ही इलाकों से, गांजा व हेरोइन के साथ साथ पशुओं के व्यापारियों का आना जाना है। अखबारों में खबरें प्रकाशित होने से पुलिस का लाखों रुपये डूब जाता है। पीडित पत्रकार दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा से जुड़े हैं और पत्रकारों के उत्पीड़न का जवाब भी देने के लिए यहां के पत्रकार संगठन योजनारत है।
उ.प्र. इलेक्टानिक मीडिया एसोसिएशन के स्थानीय शाखा की बैठक में मंगलवार को जनपद में क्षेत्रीय संवाददाताओं पर कई थानाओं की पुलिस द्वारा मुकदमें दर्ज किए जाने की निन्दा की गई और उच्च अधिकारियों से मामलों पर गंभीरता से ध्यान देने की अपील की गई। दो मामलों में सीओ कासिमाबाद को जांच का निर्देश एसपी ने दिया था। एसोसिएशन ने सभी दागी थानाध्यक्षों का क्षेत्र बदलने की मांग की है। बैठक में संगठन के राकेश कुमार, मनीष मिश्रा, सूर्यवीर सिंह, कृपा कृष्ण, आशीष तिवारी, राजेश खरवार आदि इलेक्ट्रानिक मीडिया के कैमरामैन, प्रतिनिधि शामिल थे।