चाटुकारिता या पत्रकारिता : वासिंद्र ने सुभाषचंद्रा की तुलना रामनाथ गोयनका से की

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जी समूह के दो संपादक सुधीर चौधरी और समीर आहलुवालिया खबरों का दबाव बनाकर जिंदल ग्रुप से सौ करोड़ रुपए का विज्ञापन वसूलने की कोशिश में लगे थे, जिंदल ने स्टिंग करा दिया. मामला पुलिस के पास पहुंचा, पुलिस को आरोपों में दम दिखा, ब्‍लैकमेलिंग करने के आरोप में उसने जी समूह के दोनों संपादकों को अरेस्‍ट किया.

ब्‍लैकमेलिंग के आरोपों में बुरी तरह फंसे जी समूह के मालिक सुभाष चंद्रा जोड़ तोड़ गुणा-गणित से जेल जाने से बच गए. वे मोदी के मंच पर भी दिखे. उन्‍हीं के चैनल के एक संपादक वाशिंद्र मिश्र ने उनकी तुलना अपने वेबसाइट पर रामनाथ गोयनका से कर दी है. अब आप ही तय करें इसे क्‍या कहा जाना चाहिए… नीचे वाशिंद्र का जी न्‍यूज पर प्रकाशित लेख.


भ्रष्ट तंत्र बनाम मीडिया

माना जाता है कि मीडिया को निष्पक्ष होना चाहिए। ऐसे में किसी मीडिया हाउस के मालिक का किसी पार्टी विशेष के पक्ष में आने पर सवाल खड़े होना लाजिमी है, लेकिन इसके साथ कुछ और सवाल हैं जिनका जवाब ढूंढने की कोशिश की जानी चाहिए। ये सवाल उठने चाहिए कि आखिर इसकी वजह क्या है। आखिर क्या वजह है जिसने ऐसे हालात बनाए और ऐसा करने के लिए किन ताकतों ने मजबूर किया।

किसी आम आदमी से भी पूछकर देख लीजिए, आज ऐसे हालात बन चुके हैं कि देश में CORRUPTION और POOR GOVERNANCE ने संवैधानिक संस्थानों तक की विश्वसनीयता को खतरे में डाल दिया है। ऐसा लगता है कि मीडिया भी Establishment के दवाब में घुटने टेक चुकी है और ऐसे में जब ESSEL GROUP के चेयरमैन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी तब उन्हें तरह-तरह से परेशान करने की कोशिश की गई।

2 अक्टूबर 2012 को एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन और उनके चैनल के दो संपादकों के खिलाफ दिल्ली के एक थाने में FIR दर्ज करा दी गई और इसके बाद भी उन्हें और उनके ग्रुप को परेशान करने की कोशिशें जारी रही। मौजूदा सरकार की कारगुजारी ने एक बार फिर राजीव गांधी और इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका के बीच चले संघर्ष की याद ताजा करा दी है। रामनाथ गोयनका ने शुरुआती दौर में राजीव गांधी को एक इमानदार व्यक्ति होने के नाते खुले तौर पर समर्थन किया था लेकिन बाद में राजीव गांधी कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गए और कुछ ऐसे काम शुरू कर दिए जो उन्हें नहीं करने चाहिए थे। इसके बाद रामनाथ गोयनका ने राजीव गांधी की आलोचना करनी शुरू कर दी।

बताया जाता है कि रामनाथ गोयनका और राजीव गांधी के बीच मतभेद पैदा होने के केंद्र में रिलायंस ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज़ के चेयरमैन स्व. धीरु भाई अंबानी की अहम भूमिका रही। धीरु भाई अंबानी की गलत सलाहों की वजह से रामनाथ गोयनका और राजीव गांधी के बीच मतभेद इतने गहरे हो गए कि राजीव गांधी ने रामनाथ गोयनका द्वारा संचालित इंडियन एक्सप्रेस की दिल्ली और मुंबई में स्थित टावर्स को भी टेकओवर करने की विफल कोशिश की थी। इसके खिलाफ प्रतिक्रिया स्वभाविक थी, रामनाथ गोयनका ने भी खुले तौर पर राजीव गांधी और उनके प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और सभी गैर कांग्रेसी दलों को लामबंद करके कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई।

ये भी सच है कि जिस समय रामनाथ गोयनका राजीव गांधी, उनकी पार्टी और उनकी सरकार से लड़ रहे थे उस समय भी देश की media fraternity या तो चुप थी या फिर तटस्थ थी। रामनाथ गोयनका इस लड़ाई में कई बार अलग-थलग भी पड़ते नज़र आए लेकिन उन्होंने अपने उस संघर्ष को logical end तक पहुंचाया। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में essel group के चेयरमैन और भारत में निजी क्षेत्र में TV चैनल शुरू करने के जनक सुभाष चंद्रा का दिया गया वक्तव्य एक बार फिर रामनाथ गोयनका और राजीव गांधी के बीच चले लंबे संघर्ष की याद को ताजा करता है।

स्वाभावत: सक्रिय राजनीति से दूर रहते हुए अपने व्यावसायिक कारोबार को आगे बढाने के हिमायती सुभाष चंद्रा की बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की जनसभा में जाकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की अपील तमाम सवालों को जन्म देती है। यहां ये विचार करना जरूरी है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि अराजनैतिक व्यक्तित्व वाले सुभाष चंद्रा एक राजनेता की तरह सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल करने की अपील कर रहे हैं और इससे भी ज्यादा जरूरी सवाल ये कि देश की media fraternity क्यों मूकदर्शक बनकर महाभारत के द्रौपदी के चीरहरण की स्थिति को आत्मसात किए हुए है।

अक्टूबर 2012 से लेकर अब तक ZMCL ग्रुप को किसी ना किसी बहाने मौजूदा सरकार क्या इसीलिए टार्गेट करती रही कि इस ग्रुप के चैनलों ने राष्ट्रीय और प्राकृतिक संपदा की लूट को प्रमुखता और प्रभावी तरीके से देश की जनता के सामने उजागर किया? क्या मीडिया का रोल सिर्फ और सिर्फ सरकार और सत्ता में बैठे लोगों के लिए भोंपू का रह गया है। सच उजागर करना क्या मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है और सच उजागर करने की मुहिम में शामिल मीडिया घराने के साथ MEDIA FRATERNITY को लामबंद नहीं हो जाना चाहिए। ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब खोजना एक स्वस्थ लोकतंत्र और मीडिया की विश्वसनीयता के लिए भी बेहद ज़रूरी है।

वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स

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