जनसंदेश टाइम्‍स में घमासान बढ़ा, इलाहाबाद से आनंद नारायण गए

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पिछले दिनों जनसंदेश में बतौर सीईओ ज्वाइन करने के तुरंत बाद ही आरपी सिंह ने यहां की गंदगियों को एक-एक कर साफ करना शुरू कर दिया। दरअसल, जनसंदेश टाइम्स के मालिक अनुराग कुशवाहा ने ‘सफेद हाथी’ साबित हो रहे अखबार को पटरी पर लाने के लिये उन्हें खासतौर पर और विशेष उम्मीद के साथ बुलाया था। बताते हैं कि वह सारी यूनिटों के कर्ता-धर्ताओं को समझा-समझाकर थक-हार चुके थे लेकिन अखबार में कोई सुधार नहीं हुआ।

दो-तीन सालों बाद भी अखबार लगतार घाटे का ही सौदा साबित हो रहा था। इसके बाद उन्होंने आरपी सिंह को कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सौंपकर अखबार से किनारा कर लिया। इसके बाद ही जनसंदेश टाइम्स के विघटनकारी तत्वों के सफाये का अभियान शुरू हुआ। उन्होंने पहली गाज गिराई गोरखपुर में और कभी 60-70 लोगों वाले जम्बो स्टाफ को खाली कर एकदम ब्यूरो ऑफिस बना दिया। इसको लेकर हंगामा मचना ही था और जमकर मचा भी। बनारस में भी नकारा साबित हो रहे और प्रधान सम्पादक बनने का ख्वाब पाले आशीष बागची को एकदम स्थानीय संपादक बना दिया। इससे पूर्व प्रिंट लाइन में प्रधान संपादक सुभाष राय का नाम नहीं जा रहा था लेकिन अब जाने लगा।

इसके बाद उनकी निगाह में इलाहाबाद संस्करण चढ़ा जिसने लगातार कर्मचारियों के बीच वाद-विवाद और मारपीट के चलते बनारस मैनेजमेंट की नाक में दम कर रखा था। संपादकीय प्रभारी आनंद नारायण शुक्ला के सही ढंग से काम न करने की कई शिकायतें मिलने के बाद गुरुवार को वह अचानक इलाहाबाद निरीक्षण करने पहुंच गये तो यहां सुबह की मीटिंग में तीन रिपोर्टरों के अलावा और किसी को नहीं पाया। इसकी खबर आनंद शुक्ला को मिली तो भागते-भागते ऑफिस पहुंचे। उनकी इस अकर्मण्यता पर आरपी सिंह बिगड़ गये और उनसे इस्तीफा मांग लिया।

बताते हैं कि जागरण से डिमोशन के बाद परेशान होकर जनसंदेश पहुंचे आनंद नारायण शुक्ला ने यहां अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। वो चाहे जिसको ज्वाइन करायें और चाहे जिसे बाहर कर दें, उनकी मनमानी के खिलाफ बोलने की किसी की हैसियत नहीं थी। उनसे लड़ाई मोल लेकर व कुछ अपनी गलतियों से पूर्व जीएम जीएस शाक्य को संस्थान छोड़ना पड़ा था। इसके बाद नये जीएम रंजीत कुमार आये तब आनंद शुक्ला के तेवर में कमी नहीं आई और वह अपनी मनमानी करते रहे। यहां तक कि वह मैनेजमेंट को जब-तब गाली देते रहते थे और जीएम साहब की दी हुई प्रेस रिलीज भी उठाकर फेंक देते थे।

वहीं बनारस मैनेजमेंट यह सब जानते हुये भी उनके खिलाफ कोई कदम उठाने से बच रहा था सिर्फ इसलिये ताकि अखबार के ऊपर जातिवाद को प्रश्रय देने का ठप्पा न लगे। जनसंदेश इलाहाबाद में आनंद शुक्ला के चहेते रिपोर्टरों का आतंक था, इसको लेकर डेस्क से कई बार विवाद व मारपीट की स्थिति बनी लेकिन बनारस के हस्तक्षेप से हर बार टाल दिया गया।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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