जब भाजपाइयों को टिकट दिलाने की सुनहरी यादों में डूबे प्रकांड ‘पंडित’ पत्रकार

Spread the love

कहा जाता है कि सियार कितना भी शेर का खाल ओढ़े रहे अपने लोगों की भीड़ देखकर कर हुंआ…हुंआ करने ही लगता है. लखनऊ में भी ऐसा ही हुआ. अपने का प्रकांड 'पंडित' समझने वाले एक पत्रकार, जो अपने समूह की अठारह यूनिटों की इंटरनल रेटिंग में सबसे फिसड्डी वाले में कार्यरत हैं और उजाला फैलाते रहते हैं, शेखी मारने के चक्‍कर में कबूल कर लिया कि वे सन 91 से भाजपा वालों को टिकट दिलाने का काम कर रहे हैं. अब इस टिकट दिलाने की आड़ में वे क्‍या प्राप्‍त करते हैं नहीं बताया, पर जाने-अनजाने भाजपाइयों की भीड़ में कबूल डाला कि वे लोकसभा से लेकर सभासद तक का टिकट भाजपा में दिलवाने में, जुगाड़ करवाने में शामिल रहते हैं.

शुक्रवार को मौका था एक भाजपा नेता के यहां भोजन का. हमेशा की तरह यह पत्रकार अपने एक लटकन पत्रकार के साथ पहुंचे थे. अगर इस लटकन पत्रकार को कहीं ढूंढना हो तो बातों से उजाला फैलाने वाले प्रकांड 'पंडित' पत्रकार को खोज लीजिए, लटका मिल जाएगा. खैर, बात हो रही थी भाजपा में टिकट दिलाने वाले इस प्रकांड 'पंडित' पत्रकार की. युवा भाजपाइयों की भीड़ देखकर इनसे रहा नहीं गया. सुनाने लगे सन 91 की कहानी. बताया कि कैसे बिना पैसे के लोगों को भाजपा टिकट नहीं देती है. यानी ऐसे कह सकते हैं कि बिना पैसे वालों की भाजपा तथा उनकी नजरों में कोई कीमत नहीं.  

उन्‍होंने बताया कि एक भाजपाई तिवारी जी के साथ वे दिल्‍ली के अशोका रोड स्थित भाजपा कार्यालय में केएन गोविंदाचार्य के पास पहुंचे थे. गोविंदाचार्य ने माना कि तिवारी जी अच्‍छे कार्यकर्ता हैं लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है और वो जिस सीट के लिए टिकट मांग रहे हैं, उस पर जीत पाना उनके लिए संभव नहीं है. पत्रकार महोदय ने आगे बताया कि तिवारी जी को अटल जी ने दूसरी सीट से लड़ने को कहा, लेकिन तिवारी जी कुछ लोगों के बहकावे में आकर उसी सीट से लड़ने की जिद कर बैठे. नतीजा यह रहा कि 'बाजपेयी' जी तिवारी जी को सीट नहीं दिलवा पाए.     

इसी बीच एक भाजपाई ने चर्चा कर दी कि एक सभासद की सीट पत्रकार महोदय ने ही भाजपा के टिकट पर पक्‍की कराई थी. हालांकि भाजपाई वहां एक और पत्रकार से 'सामना' होते ही उनका पांव छूने लगते थे. प्रकांड 'पंडित' पत्रकार को यह रास नहीं आ रहा था. इसी कड़ी में खुद को बड़ा दिखाने के चक्‍कर में सन 91 की कहानी सुना डाली. वैसे कहा जाता है कि किसी दौर में भाजपा में तीन चार कथित पत्रकारों का बोलबाला माना जाता था. यहां तक कि लोकनिर्माण विभाग में तबादलों की लिस्‍ट भी इन्‍हीं तीन-चार लोगों के तय करने पर तैयार होती थी.

बीते 'कल' में 'राज' था इन पत्रकारों का. इन लोगों का बड़ा 'पाठक' वर्ग था. बताते हैं कि अखबार के 'पाठक' के बिना बीते 'कल' के 'राज' में लोकनिर्माण विभाग का पत्‍ता तक नहीं हिलता था. भाजपा कार्यालय में ही लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों से लेकर बड़े-छोटे अधिकारियों का ट्रांसफर तथा पोस्टिंग की लिस्‍ट तय की जाती थी. अब कहने की जरूरत नहीं है कि इसकी आड़ में कितने वारे न्‍यारे होते होंगे. पर जब भाजपा का दुर्दिन आ गया तो ये बड़े पत्रकार भी हाशिए पर आ गए. कुछ इधर गिरे कुछ उधर गिरे. कुछ दूसरी तरफ 'उजाला' फैलाने लगे.

इसी दौर में इस कॉकस का 'सामना' कुछ दूसरे पत्रकारों से हुआ और इन लोगों के सुनहरे दिन खतम होने लगे. लिहाजा सुनहरे दिन के सहारे नए भाजपाइयों को आकर्षित करने के लिए 91 की कहानियां जगह-जगह सुनाते फिर रहे हैं ताकि नए जमाने में 'जिंदा' रह सकें. हालांकि प्रकांड 'पंडित' पत्रकार सुनहरे दिन की और कहानी सुनाकर भाजपाइयों को अपनी ताकत जताने का प्रयास करते लेकिन इसी बीच लटकन पत्रकार का 'धीरज' जवाब देने लगा और 'बाजपेयी' जी वाली कहानी आधी-अधूरी ही रह गई. (कानाफूसी)

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *