Himanshu Kumar : समाज के अन्याय के मामलों में कानून का बहाना बनाने वालों को ये भी स्वीकार कर लेना चाहिये कि जनरल डायर का गोली चलाना भी कानूनी था. भगत सिंह की फांसी भी कानूनी थी. सुक़रात को ज़हर पिलाना कानूनी था. जीसस की सूली की सज़ा कानूनी थी. गैलीलियो की सज़ा कानूनी थी. भारत का आपातकाल कानूनी था. गरीबों की झोपडियों पर बुलडोजर चलाना कानूनी है. आज की हड़ताल गैरकानूनी है. अंग्रेज़ी राज का विरोध गैरकानूनी था. सुकरात का सच बोलना गैरकानूनी था. कानून और गैरकानूनी तो ताकत से निर्धारित होते हैं महाराज. आज तुम्हारे पास ताकत है इसलिये हम गैर-कानूनी है. कल जब हमारे हाथ में ताकत होगी तब ये मुनाफाखोरी और अमीरी गैरकानूनी मानी जायेगी..
Jagadishwar Chaturvedi : एबीपी न्यूज चैनल बहस करने जा रहा है जनता की परेशानी के लिए जिम्मेदार कौन ? ये चैनलवाले यह विषय बनाते तो बेहतर होता कि मजदूरों की परेशानी के लिए जिम्मेदार कौन?
दिनेशराय द्विवेदी : ये कुछ भी नहीं है। जब भी हड़ताल होती है तब सारे चैनल सरकार और पूंजीपतियों के रनिंग डॉग हो जाते हैं। आम जनता तो हड़ताल में या उस के साथ है। ये परेशान आम आदमी और जनता पता नहीं कौन है। जी टीवी ने तो हद कर दी है, वह तो हड़ताल होने से पहले ही बता रहा है कि हड़ताल से लोगों को यह परेशानी तो होनी ही है। वाचक बाहर निकल कर जरूर अपने मालिकों को गाली देते होंगे। कितना झूठ बुलवाता है।
Umesh Chandra Dhangar : सब एक्सक्लूसिव के चक्कर मेँ लगे हैँ, आम आदमी से सच मेँ इनका कोई लेना देना नहीँ, बस अपने आपको सबसे आगे दिखाकर श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैँ, आम आदमी की दिनचर्या यही है कि आज हड़ताल के चलते काम नहीँ मिला, चलो आज दूध, पानी पीकर काम चला लो?
Harshvardhan Tripathi: ''Rs 20,000 cr of GDP will be lost due to strike: Assocham'' देर शाम तक सारे उद्योग संगठन इसी तरह का अनुमान दे देंगे और मीडिया में इसे देश का नुकसान बताकर हेलाइन चलाया जाएगा। लेकिन, सवाल ये है कि ये किसकी GDP का नुकसान है। ये क्या कारोबारी, उद्योगपति के मुनाफे का नुकसान है या सचमुच देश की GDP का नुकसान है। क्या इस GDP में हम भारत के लोग की भी कोई हिस्सेदारी है। मुझे तो लगता है कि ये सिर्फ कारोबार के नुकसान के आंकड़े हैं।
Pankaj Srivastava : मैं शुक्रगुजार हूं उन मित्रों का जिन्होंने वक्त रहते बता दिया कि हड़ताल करने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक है। गैरकानूनी काम करने से बाल-बाल बचा, वरना महंगाई से हलकान-परेशान मैं, हड़ताल का समर्थन करने के मूड में था। खैर, मित्रों की दयानतदारी पर सिर झुकाया तो ये भी याद आया कि सुप्रीम कोर्ट का संविधान पीठ इमरजेंसी को भी जायज ठहरा चुका है। बदन में सिहरन सी दौड़ गई..इतने दिनों तक इमरजेंसी के खिलाफ सोचता-बोलता रहा, ये भूलकर कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हो रही है। ….दुहाई मी लार्ड…हो सके तो माफ कर दीजिए…आगे से सोचने की गलती नहीं करूंगा। आपसे अपील है कि देश मे इमरजेंसी लगाने के लिए सरकार को तुरंत निर्देश दें….कोई दिक्कत नहीं होगी। देश जान गया है कि इमरजेंसी कानूनी है और हड़ताल गैरकानूनी।
SK Chaudhary Sonu : क्या गजब का इत्तेफाक है… मजदूरों के खिलाफ दिन भर भागदौड़ करके मीडिया मजदूर बनाते रहे खबर। आज के भारत बंद में शामिल मजदूरों को मीडिया ने चंद लोगों की तोड़फोड़ की वजह से विलेन (गुंडा) बना दिय औऱ कंपनी के मालिक और मैनेजरों (मोटी तनख्वाह) को पीड़ित। क्या इसलिए कि मीडिया कंपनीयों में काम करने वाले मजदूरों को मजदूर कैटगरी से अलग किया जा सके। कुछ मीडिया कंपनियों को छोड़ दें तो सभी मीडिया घरानों के (न्यूज चैनल या अखबार) मजदूरों (कर्मचारियों) की हालत, किसी फैक्ट्री के मजदूरों से भी बदतर है। यहां भी न्यूनतम मजदूरी 5 हजार से लेकर 7 हजार तक है, जबकि लुटे-पिटे कंपनी के अधिकारियों की सैलरी लाख के आसपास है और कंपनी में 10 हजार से नीचे काम करने वालों की संख्या लगभग आधी है। इन बेचारों मजदूरों की हालत तो इतनी खराब है कि ये ना तो हड़ताल कर सकते हैं और ना ही कोई मांग… आखिर पत्रकार जो कहलाना है इन्हें, इसलिए अपने आपको उन मजदूरों की कैटेगरी से अगल रखते हैं।
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