दैनिक जागरण जैसे घोर बाजारू अखबार से किसी नैतिकता की उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती है, लेकिन कम से कम अपने कर्मचारियों के सम्मान के लिए थोड़ी बहुत शर्म तो होनी ही चाहिए. जागरण समूह मुश्किल में फंसने वाले अपने कर्मचारियों से पल्ला झाड़ने के लिए कुख्यात रहा है, लेकिन शाहजहांपुर में इसने बेशर्मी की हद ही पार कर दी है. हल्ला बोल के दौरान हल्ला बोलने वाले के चरणों में लोट जाने वाला यह समूह हमेशा से बिना रीढ़ का रहा है. पत्रकारिता की आड़ में सही गलत धंधों को चलाने के लिए बुराइयों से टकराव नहीं बल्कि उनके चरणों में लोटना ही सबसे ज्यादा मुफीद मार्ग होता है.
दैनिक जागरण आठ अक्टूबर को शाहजहांपुर में कवि सम्मेलन आयोजित करा रहा है. इसमें ऐसे व्यक्ति को संयुक्त प्रायोजक बनाया गया है, जो इस अखबार के एक व्यूरोचीफ की हत्या कराने के आरोप में जेल जा चुका हो और सबूतों के अभाव में कोर्ट से छूट चुका है. अखबार के लिए अपनी जान देने वाले पत्रकार की गरिमा का ख्याल भी इस समूह ने नहीं रखा. 22 मई 2004 को इस अखबार के तेज तर्रार ब्यूरो चीफ प्रदीप शुक्ला को डा. रमाकांत के हास्पिटल निकलते समय दिन दहाड़े गोली मर कर हत्या कर दी गई थी. तब भी अखबार प्रबंधन अपनी आदत के अनुसार मामले को निपटाने में जुट गया था.
पर एक पत्रकार की दिनदहाड़े हत्या के विरोध में पत्रकारों ने आंदोलन किया तो पुलिस ने जांच के बाद हत्यारों को पकड़ने के लिए जाल बिछाना शुरू किया. ब्यूरो चीफ की हत्यारो पप्पू धोबी और सोनू टक्कल का नाम आने के बाद पुलिस ने इन्हें अरेस्ट किया. पूछताछ के दौरान जो सच्चाई सामने आई उससे सभी हतप्रभ रह गए. प्रदीप शुक्ला की हत्या में शाहजहांपुर के मशहूर सर्जन डा. वसीम और उनके भाइयों का हाथ निकला. हिस्ट्रीशीटर सोनू टक्कल और पप्पू धोबी ने पुलिस को बताया कि डा. वसीम के छोटे भाई अकलीम खां, मोहसिन और भतीजे बार्डर ने पैसे देकर मुझ से हत्या कराई थी. इनलोगों ने ही एक मोटर साइकिल दी थी और कहा था कि घटना स्थल पर ही इस को छोड़ देना. डा वसीम का भाई मोहसिन, भतीजा वाडर भी हिस्ट्रीशीटर है.
पुलिस ने अकलीम, मोसिन, वाडर को जेल भेज दिया और डा. पर हल्या के षणयंत्र में शामिल होने का आरोप लगाते हुए 120बी में जेल भेज दिया था. पुलिस ने 2008 में सोनू और पप्पू का इनकाउंटर कर दिया. इसके बाद डाक्टर के खिलाफ सबूत कमजोर हो गए. दूसरे प्रदीप शुक्ला के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण मुकदमे की पैरवी भी कमजोर हो गई. पुलिस के असयोग और मुकदमे की कमजोर पैरवी और सबूतों के अभाव कोर्ट ने डा. वसीम समेत सभी को दोषमुक्त करार दे दिया था.
इसी डाक्टर वसीम को दैनिक जागरण प्रबंधन ने कवि सम्मेलन का संयुक्त प्रायोजक बनाया है. पैसे के लिए जागरण समूह तो अपने सम्मान को अनेकों बार गिरवी रखता ही आया है, इस बार उसने अपने एक शहीद कर्मचारी की मौत का भी लिहाज नहीं किया. दैनिक जागरण समूह के साथ जुड़े कर्मचारी खुद सोचें कि इस समूह की नजर में उनकी कीमत और औकात क्या है.