राष्ट्रीय नव वर्ष के दौरान जब सिंहली व तमिल समुदाय एक साथ मिलकर विविधता में एकता के इस त्योहार को बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं, तब यह सुनकर काफी शोक हुआ कि जाफना स्थित तमिल समाचार-पत्र उत्थायन पर एक और हमला हुआ है। इस अग्रणी तमिल समाचार-पत्र पर साल 2006 से अब तक यह 16वां हमला है। इससे यह साफ संकेत मिलता है कि देश में कानून का शासन पूरी तरह से खत्म हो चुका है। यह इस बात का भी संकेत है कि एलटीटीई की हार के बाद उत्तरी व पूर्वी प्रांतों के लोगों को इंसाफ दिलाने और शांति व अमन-बहाली प्रक्रिया में सरकार विफल रही है।
उत्थायन पर लगातार दो हफ्ते में दो हमले हुए। इससे पहले तीन अप्रैल को इसके कीलिनोच्ची दफ्तर पर नकाबपोश हमलावरों ने धावा बोला था। सरकारी तंत्र द्वारा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि खबरों में बने रहने के लिए इस संस्थान ने जान-बूझकर अपने पर हमले करवाए। पर ऐसे हमले, जिनमें पत्रकारों की हत्या हो जाती हैं या फिर उन्हें अगवा कर लिया जाता है, वहां कोई कुछ भी कहे, पाठक वर्ग सच सुनना और जानना चाहता है। वह मामले की तह में जाकर यह पता लगाना चाहता है कि किसने कब क्या किया।
जहां तक उत्थायन का मामला है, तो 2006 से उस पर हो रहे सुनियोजित हमले में अब तक उसके तीन कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। हम इस समाचार-पत्र की दिलेरी को सराहते हैं कि वह राजनीतिक गुंडों व उकसाई भीड़ के हथियारों के सामने कलम लिए खड़ा है। उत्थायन पर हुए हमलों का प्रभाव जाफना या श्रीलंका तक सीमित नहीं है। वैश्विक स्तर पर यह मुद्दा उठ चुका है। अमेरिकी राजनयिक मिशेल जे सिसॉन ने श्रीलंका सरकार के सामने इस मामले की जांच की मांग की है। अमेरिकी प्रशासन ने यह भी याद दिलाया कि सरकार ने मीडिया की आजादी को बहाल रखने का आश्वासन दिया था। लेशंस लन्र्ट ऐंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन की सिफारिशों व यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स कौंसिल के प्रस्तावों, दोनों में प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख है और इन पर श्रीलंका सरकार ने दस्तख्त किए हैं। ऐसे में, ये हमले कई सवाल खड़े करते हैं। (डेली मिरर, श्रीलंका)