जिस अखबार का प्रसार ज्यादा है, अगर उसी की रीडरशिप भी ज्यादा होगी तो क्या जरूरत है, रीडरशिप सर्वे की। कोई यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि वह पिछड़ गया है। अपने अखबारों में पहले पेज पर खबर छाप रहा कि सर्वे गलत है। यह फर्जीबाड़ा है। तकनीक गलत है। कंपनी को कोई ज्ञान ही नहीं है। अरे .. .. .. कुछ नया करोगो नहीं। खुद को बदलोगे नहीं। जब पिछड़ोगे, तो हल्ला करोगे।
दरअसल दैनिक जागरण और अमर उजाला की अपनी दिक्कतें हैं। उन्हें सर्वे के सही और गलत होने से कोई लेना देना ही नहीं है। उन्हें पीड़ा सिर्फ इस बात की है कि हिन्दुस्तान आगे कैसे निकल गया। इसीलिए अन्य मामलों में स्वयं का प्रतिस्पर्धी कहने वाले अखबार अब एक हो गए हैं। दैनिक जागरण ने बुधवार के अखबार में क्या खूब तथ्य रखे हैं। वह कहता है कि दैनिक जागरण को सिर्फ दो लोग पढ़ते हैं। और दूसरे अखबार को 11 लोग कैसे पढ़ते हैं। अरे ज्ञानियों, यह पाठक पर है कि वह कौन सा अखबार पढ़ता है। वह सालों से आपका अखबार खरीद रहा है, तो वह खरीद रहा है, लेकिन पढ़ेगा भी आपका ही अखबार यह जरूरी तो नहीं।
जरा ध्यान दीजिए। प्रसार में दैनिक जागरण और अमर उजाला आगे हैं। अगर यह बात सही है तो जाहिर है कि इनके पास विज्ञापन भी ज्यादा होगा। जब विज्ञापन ज्यादा होगा तो खबरों के लिए जगह कम होगी। खबरों के लिए जगह कम होगी तो सबकी खबरें छप पाना मुश्किल होगा। जब सबकी खबरें नहीं छपेंगी तो कोई व्यक्ति आपका अखबार खरीद तो लेगा, लेकिन पढ़ेगा कि नहीं, यह कह पाना दुश्कर है। दूसरी ओर हिन्दुस्तान में इतना विज्ञापन नहीं होता। कम से कम उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों के बात करें तो। यहां अखबारों में खबरें ज्यादा रहती हैं। यानी सबकी खबरें छप जाती हैं। अगर हिन्दुस्तान में सबकी खबरें छपेंगी तो किसी व्यक्ति के यहां भले हिन्दुस्तान न आता हो, लेकिन वह किसी से मांग कर पढ़ तो जरूर लेगा। तो बताओ रीडरशिप हिन्दुस्तान की बढ़ेगी कि नहीं। शोर मचाना हो, हल्ला करना हो तो करते रहिए। पाठक बहुत समझदार है वह सब जानता है।
जरा गौर कीजिएगा, चार राज्यों के चुनाव से पहले जो एक्जिट पोल आया था, उसमें सिर्फ एसी नेलसन ने यह बताया था कि आम आदमी पार्टी को 28 सीटें तक मिल सकती हैं। इसका सबने मजाक बनाया। लेकिन जब परिणाम सामने आए तो सबकी बत्तीसी अंदर की ओर चली गई। एसी नेलसन ही कंपनी है, जिसने इस बार रीडरशिप का सर्वे किया है। अगर दो तीन अखबार मिलकर किसी सर्वे पर संदेह कर रहे हैं तो यह वाकई शर्मनाक और निंदनीय है। वही सर्वे जब आपको नम्बर वन बता देता है तब तो आप खुश हो जाते हैं और जब वही आपको पीछे दिखा देता है तो आप नाराज हो जाते हैं। ऐसा क्यों। फिर आप कहिए कि एबीसी का सर्वे भी गलत है और हम नम्बर वन नहीं हैं।
पहली बार कोई नई तकनीक इजाद होती है तो इस तरह से सवाल उठते ही हैं, जैसे उठ रहे हैं। जब पहली बार ईबीएम आया तब भी तो लोगों ने फर्जीबाडे़ की आशंका जताई थी। फिर क्या हुआ। सबने उस पर विश्वास किया और वह तकनीक आज हमारे लिए सहूलियत का विषय बन गई है। तो मित्रों सवाल उठना छोड़ो अपने आप को बदलो, क्योंकि तरक्की करनी है तो नया नजरिया तो लाना ही पड़ेगा।
हिंदुस्तान टाइम्स के सीनियर कॉपी एडिटर पंकज मिश्रा के एफबी वॉल से साभार.