Om Thanvi : दूरदर्शन के ख़ज़ाने में ऐसी-ऐसी नायाब चीज़ें जमा हैं कि काश कोई विवेकवान उन्हें सहेजकर बाज़ार में ले आए तो वे सर्वसुलभ हो जाएं! ऐसी ही एक रेकार्डिंग यू-ट्यूब पर है। फ़िराक़ साहब से बातचीत करते हुए उर्दू कवि जगन नाथ आज़ाद और दूरदर्शन के प्रोड्यूसर कमाल अहमद सिद्दीक़ी। फ़िराक़ साहब के दाईं ओर आपको तीन हिंदी कवि दिखाई देंगे — सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, कन्हैयालाल नंदन और रमानाथ अवस्थी। बाक़ी को पहचान सकें तो आप पहचानिए। यह रेकार्डिंग अपूर्ण है। दूसरा भाग यू-ट्यूब पर मिलता तो है, पर वह एक जगह ठहरकर अधूरा रह जाता है। सो जल्दी ही दूरदर्शन से मैं इसका पूरा अंश जुटाता हूं।
हर कवि बौद्धिक ऊंचाई पर हो, यह ज़रूरी नहीं। पर फ़िराक़ साहब अब तक की उर्दू शायरी में शायद सबसे बड़े बौद्धिक थे — इसका अंदाज़ा इस रेकार्डिंग से भी किया जा सकता है। छोटे-से टीवी संवाद में वे कितना कुछ अधिकार और ठसक से समेट जाते हैं: संस्कृत, हिंदी, उर्दू, अंगरेज़ी, इटालियन, लेटिन, ग्रीक, वर्नाकुलर, काव्यभाषा, लोकभाषा, सजावटी भाषा; भारत, ब्रिटेन; वेद, गीता, बाइबिल; कालिदास, सूरदास, कबीर, तुलसीदास, प्रेमचंद, दाग़, ग़ालिब, मिल्टन, डिकंस, स्टालिन, एडम स्मिथ…। और बीच-बीच में अद्भुत सूक्तियां, जिनमें दो मुझे याद रहेंगी: साहित्य ‘‘ब्रिलियंट इलिटरेसी’’ है; और बड़ा साहित्य तरकारी खरीदने की भाषा में लिखा जाता है — यानी निपट सरल, सहज भाषा में।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के फेसबुक वॉल से साभार.