युवाओं की बातें कहने और सुनने का लक्ष्य लेकर लखनऊ की सरजमीं पर दूसरी बार उतरा नवभारत टाइम्स अपना पुराना इतिहास दोहराने की राह पर बढ़ चला है. युवाओं की टीम और युवा संपादक के बीच 'जागरण सोच' नए जमाने के नए अखबार पर भारी पड़ रहा है. फैंटेसी के साथ लखनऊ की में कदम रखने वाला एनबीटी अब पुराने सनातनी अखबार की तरफ बढ़ चला है. अब इसमें ना तो नयापन नजर आ रहा है और ना ही तेवर. स्कीम खतम होने के बाद सर्कुलेशन भी बुरी तरह गिर चुका है.
सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि इस अखबार में 'मिश्रित' टीम खड़ा करने वाले संपादक सुधीर मिश्रा की दिलचस्पी कम हो गई है. वो ऑफिस में भी कम समय दे रहे हैं. उनकी दिलचस्पी कम होने से अखबार की विस्तारित समुद्री सोच सूखी 'नदी' में सिमटती चली जा रही है. सुधीर की कम दिलचस्पी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनावी माहौल में वो एक सप्ताह की छुट्टी पर घूमने के लिए राजस्थान चले गए. मीटिंग में भी अब उनकी बहुत चलती नहीं दिख रही है. हालांकि इसके कारणों को लेकर अखबार में अंदरखाने दो तरह की चर्चा हो रही है. चर्चा का एक छोर सुधीर के किसी दूसरे राह पर जाने की तरफ इशारा करता है तो दूसरा छोर नदीम को प्रमुखता मिलने की चुगली करता है.
मीटिंग के दौरान भी सुधीर बहुत इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं. प्रेम शंकर मिश्र, सूर्य कुमार शुक्ला समेत तमाम तेजतर्रार रिपोर्टर जब मीटिंग में खबरों को लेकर नई सोच और विजन प्रस्तुत करते हैं तो सुधीर की मौजूदगी में ही नदीम सभी को खारिज कर देते हैं. इन जैसे तमाम रिपोर्टर निराश हैं. वे खुद ना तो नया विजन रिपोर्टरों को बताते हैं और ना ही खुद करते हैं. उनकी सोच वहीं दैनिक जागरण की बंधुआगिरी कार्यप्रणाली की तरह ही कुंठित सी लगती है. पुराने अंदाज में खबरों का प्रजेंटशन एनबीटी की नई और कारपोरेट सोच से मेल नहीं खा रहा है, अखबार का कंटेंट लगातार पिट रहा है. सर्कुलेशन भी लगातार कम हो रहा है. हां, कार्यालय की पार्टियों के दौरान नदीम मुलायम सिंह यादव और सपा से अपनी नजदीकियों की जिक्र करना नहीं भूलते. यहां तक कि मुलायम सिंह यादव की नकल करते हुए खूब मिमिक्री भी करते हैं.
सूत्रों का कहना है कि इतना ही नहीं नदीम यह भी बताते हैं कि वे समाजवादी छात्र सभा के पहले प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं तथा जूनियर लाइब्रेरियन के चुनाव के लिए मुलायम सिंह ने उन्हें दस हजार रुपए दिए थे. इतना ही नहीं संपादक भले ही सुधीर मिश्र हों, लेकिन सपा और सीएम ऑफिस से सारा कनवरसेशन नदीम से ही होता है. सरकार के लिए एनबीटी मतलब नदीम हो चुका है. कहा जा रहा है कि नदीम ने इसी एहसान का बदला चुकाने के लिए एनबीटी को सपा का मुख पत्र बताने पर तुल गए हैं. सरकार या सपा विरोधी खबरें रोक ली जाती हैं या फिर कांट-छांट कर प्रकाशित की जाती है. नदीम के इस रवैये से रिपोर्टर भी नाराज हैं. उनके अंदर कुंठा लगातार बनी हुई है. सूत्र बताते हैं कि अखबार के शुरुआत में जो खुला माहौल था, अब उस पर तनाव तारी हो चुका है. (कानाफूसी)