: पत्र लिखकर इस मामले की जांच पुलिस विभाग से अलग किसी अन्य विभाग से कराने की मांग की : विजय कुमार शर्मा, पुलिस उपाधीक्षक, 38 वीं वाहिनी, पीएसी, अलीगढ के निलंबित किये जाने से सम्बंधित समाचारों के सन्दर्भ में आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने कुछ प्रमुख समाचारपत्रों की प्रतियां संलग्न करते हुए अपनी व्यक्तिगत हैसियत में प्रमुख सचिव गृह तथा मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश को एक पत्र लिखा है. उन्होंने इस पत्र में यह निवेदन किया है कि उन्होंने इस समाचार के बाद विजय शर्मा से फोन पर बातचीत कर पूरे तथ्य जानने की कोशिश की जिसमें विजय ने बार-बार स्थानांतरण, वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर आरोप, आईजी कानपुर परिक्षेत्र के साथ मीटिंग के दौरान कथित अभद्रता आदि समस्त मुद्दों पर विस्तार से अवगत कराया.
अमिताभ ठाकुर ने पत्र में यह निवेदन किया है कि चूँकि शर्मा ने अपने स्तर पर स्वयं पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश के खिलाफ भ्रष्टाचार सम्बंधित अत्यंत गंभीर आरोप लगाया है, अतः रतनलाल शर्मा बनाम मैनेजिंग कमिटी, 1993 (4 एससीसी) 727 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुक्रम में उनके द्वारा दहेज हत्या में राजनैतिक दबाव, बार-बार स्थानान्तरण, उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार, आईजी कानपुर द्वारा उनके साथ किये गए कथित अभद्रता आदि समस्त आरोपों की जांच पुलिस विभाग से अलग शासन के किसी अन्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा कराई जाए ताकि यह सन्देश जाए कि न्याय सिर्फ हो नहीं रहा, न्याय होता हुआ दिख भी रहा है.
आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की इस पहल के बाद पुलिस विभाग के ज्यादातर ईमानदार अधिकारी कहने लगे हैं कि अब अफसरों कर्मचारियों को भी अपनी बात रखने का मौका दिया जाना चाहिए और बात रखने पर कोई विभागीय कार्यवाही नहीं किया जाना चाहिए. वजह ये है कि ईमानदार अफसरों व कर्मियों को उत्पीड़न और प्रताड़ना के जरिए गलत काम करने पर मजबूर किया जाता है और जो गलत काम नहीं करता उसका देर तक व दूर तक उत्पीड़न किया जाता है. अगर वह उत्पीड़ित अधिकारी अपनी बात जनता के सामने और मीडिया के सामने रख दे तो उसे ही अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित कर दिया जाता है.