एक तरफ इंडिया न्यूज में बड़े-बड़े लोगों के जुड़ने की खबरें चल रही हैं. दीपक चौरसिया तथा पुण्य प्रसून बाजपेयी समेत तमाम लोग इंडिया न्यूज से जुड़ने जा रहे हैं तो दूसरी तरफ इंडिया न्यूज के स्ट्रिंगर पिछले 18 महीनों से अपने पगार के लिए तरस रहे हैं. दीपक चौरासिया ने बहुत बड़ा दांव खेला है. सब टकटकी लगा कर उनकी ओर देख रहे हैं. चौरासिया जी को मालिकों ने हिस्सा-पत्ती भी दी है. खैर, इससे हमें कुछ नहीं लेना देना हम तो चैनल के छोटे से सिपहसालार हैं, जिन्हें सुबह उठते ही रात को लिखवाए डे प्लान पर अपडेट, फिर पल पल की रिपोर्ट और ताजा से ताजा खबरें भेजनी होती हैं. ताजा टिकर भेजने होते हैं. कब शाम हो जाती है कब रात हमे कुछ नहीं पता चलता. अगले दिन वही दिनचर्या.
पर हमारी हालत बंधुआ मजदूरों से भी बदतर है. बंधुआ मजदूरों को कभी न कभी तो मुक्ति दिलवाने वाला आ जाता है, लकिन इंडिया न्यूज़ के पत्रकारों तो मुक्ति तो शायद मौत के बाद ही मिलेगी. पगार किस चिड़िया का नाम है ये शायद इंडिया न्यूज़ के पत्रकार भूल चुके हैं. अठारह महीनों से पगार के दर्शन नहीं हुए, क्या ये बात मालिकों को नहीं पता? मालिकों सब पता है. इंडिया न्यूज से इस्तीफा देने से पहले इसरार शेख ने खुद इंडिया न्यूज़ हरियाणा के सभी पत्रकारों को फ़ोन किया और करार किया की पूरे तो नहीं पर पचास प्रतिशत राशि का भुगतान हो जायेगा, फिर हर महीने नियमित भुगतान होगा. लेकिन रात गयी बात गयी. संस्थान ने पत्रकारों के हितों की रक्षा करने वाले इसरार शेख को ही बहार का रास्ता दिखा दिया. अब हमारी उम्मीदें दीपक चौरसिया की तरफ है. वे जमीन से उठे हुए हैं क्या वे हमारी समस्याओ का निदान करेंगे?
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.