लखनऊ : ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के मशहूर व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल का शुक्रवार को सुबह एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे तथा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। दस दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी.एल. जोशी ने उन्हें अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। श्रीलाल शुक्ल अपने पीछे एक पुत्न तथा तीन पुत्नियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी का निधन कुछ वर्ष पहले ही हो चुका है।
31 दिसंबर 1925 को जन्मे शुक्ल ने 'राग दरबारी' उपन्यास से शोहरत पाई थी। हाल ही में इन्हें प्रख्यात साहित्यकार अमरकांत के साथ संयुक्त रूप से हिंदी के 45वें अतिप्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया था। 2008 में उन्हें पदमभूषण से भी सम्मानित किया गया था। श्री शुक्ल के निधन पर हिन्दी साहित्य में शोक की लहर दौड़ गई है। भारतीय ज्ञानपीठ, जनवादी लेखक संघ प्रगतिशील लेखक संघ समेत कई साहित्यिक संगठनों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। श्रीलाल शुक्ल ने ‘राग दरबारी’, ‘मकान’, ‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘पहला पड़ाव’, ‘अज्ञातवास’ तथा ‘विश्रामपुर का संत’ जैसी कालजयी रचनाओं से साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।