उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिला बरेली के मुकुल गुप्ता फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई आईपीएस जे रविंद्र गौड़ समेत 11 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने जा रही है। लखनऊ के मौजूदा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौड़ मुठभेड़ के वक्त बरेली में एएसपी के पद पर तैनात थे। सीबीआई ने आईपीएस के खिलाफ राज्य सरकार से अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी। दो माह से जवाब नहीं मिलने पर सीबीआई तय अवधि के बाद अदालत में चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी में है। हालांकि मामले को तूल पकड़ता देख सरकार ने अभियोजन स्वीकृति पर विचार करना शुरू कर दिया हैं और जल्द की उसकी तरफ से हरी झंडी मिल जायेगी।
गौरतलब हो बरेली के फर्जी मुठभेड़ कांड की जांच कर रही सीबीआई ने बीते वर्ष के अंत में 24 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को पत्र भेजकर जे रविंद्र गौड़ के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगी की थी। सीबीआई ने अनुमति पत्र मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को भेजा थ। मुख्य सचिव ने फाइल गृह विभाग को भेज भी, लेकिन वहां से फाइल आगे नहीं बढ़ पाई। पिछले दिनों जब गौड़ को लखनऊ का एसएसपी बनाया गया तब भी गृह विभाग से पूछा गया था कि क्या गौड़ के खिलाफ सीबीआई ने अभियोजन स्वीकृति मांगी हुई है? लेकिन गृह विभाग ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है। इसके बाद गौड़ लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बना दिये गये। मामला तूल पकड़ने लगा तो गृह विभाग के हाथ-पांव फूल गये। मौके की नजाकत भांप कर तब बाद प्रमुख सचिव गृह ने यह स्वीकार कर लिया कि फर्जी मुठभेड़ मामले में एसएसपी समेत 11 के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सीबीआई जांच कर रही है। सीबीआई ने गौड़ के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी और गृह विभाग अभी इस पर विचार कर रहा हैं।
कहा जाता है कि करीब साढ़े पाच वर्ष पूर्व 30 जून 2007 को बरेली-दिल्ली रोड पर कथित मुठभेड़ में बदायूं निवासी मुकुल गुप्ता की बरेली पुलिस की गोली से मौत हो गई थी, जबकि पंकज मिश्रा नाम के युवक को मौके से पकड़ा गया था। पुलिस का दावा था कि दोनों सीबीगंज में बैंक लूटने की नीयत से जा रहे थे। मुकुल के परिजनों ने पुलिस पर मुकुल की हत्या करने का आरोप लगाया था। काफी हो हल्ला मचा तो दबाव में ‘दूध का दूध और पानी का पानी करने’ के नाम पर उक्त मामले की जांच बदायूं पुलिस को सौंपे दी गई। मुकुल के परिजन विभागीय जांच पर अविश्वास जताते हुए अदालत चले गये। असंतुष्ट परिजनों ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई। जहां पीड़ित पक्ष को सुनने के बाद अदालत के आदेश पर सीबीआई ने जून 2010 में जांच शुरू कर दी। उसी वर्ष सीबीआई की विशेष जांच शाखा ने गौड़ के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ मामले में केस दर्ज कर लिया। उनके साथ सीबीगंज थाने में तैनात तत्कालीन थानाध्यक्ष विकास सक्सेना, फतेहगंज वेस्ट थाने के प्रभारी डीके शर्मा, उप निरीक्षक भोला सिंह, देवेंद्र कुमार, आरके गुप्ता, अनिल कुमार, कालीचरण समेत कुल 11 पुलिस कर्मियों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करके उन्हें सहभागी बनाया गया।
करीब दो वर्षों के बाद मई 2012 में गिरफ्तार सिपाही जगबीर ने पुलिस का अपराध स्वीकार करते हुए बयान दिया कि मुकुल को उसकी ही सरकारी रायफल से गोली मारी गई थी। सीबीआई ने गौड़ का भी बयान दर्ज किया था, जिसमें उन्होंने खुद को निर्दोष बताया था। प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव का कहना है कि सीबीआई द्वारा जे रविंद्र गौड़ के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगे जाने का पत्र उन्हें मिला है। सीबीआई के आग्रह और आगे के फैसले पर विचार चल रहा है। जल्द ही इस बारे में फैसला ले लिया जायेगा। वैसे जनता जर्नादन हैरान जरूर है कि जो आईपीएस शक के दायरे में है, उसके खिलाफ सरकार जांच दबाये बैठी है और उसे लखनऊ का एसएसपी बना कर सौगात दे दी गई।
लेखक अजय कुमार लखनऊ में पदस्थ हैं. वे यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं. अजय कुमार वर्तमान में ‘चौथी दुनिया’ और ‘प्रभा साक्षी’ से संबद्ध हैं.