कोई कहता है खुर्शीद अनवर का सुसाइड नोट मिला है; कोई कहता है चिठ्ठी मिली है! कहाँ है, किसने देखी, पूछें तो कोई जवाब नहीं मिलता। पुलिस के हवाले से किसी टीवी-अखबार में खबर उछल गई तो फौरन उसे मान लिया गया प्रमाण या अकाट्य तथ्य!
सच्चाई यह है कि आपराधिक मामलों में हमारे मीडिया की रिपोर्टिंग भरोसेमंद नहीं। वह पुलिस से प्राप्त अपुष्ट जानकारी ज्यादा होती है। फिर पत्रकार भी अपनी कल्पना को हवा देने लगते हैं। आज का ही एक हिंदी दैनिक देख लीजिए, शराब उसमें "कोल्ड ड्रिंक्स" हो गई है और रिपोर्टर लिखता है: "जाँच से पता चला है कि खुर्शीद को गलती का अहसास होने लगा था।" कौनसी जांच इस अहसास को पकड़ लाई, खबर से पता नहीं चलेगा। याद कीजिए पत्रकार इफ्तिख़ार गिलानी का वाकया, जिन्हें बड़े-बड़े अखबारों और टीवी चैनलों पर गद्दार, आतंकवादी, स्मगलर, जिहादी, पाकिस्तानी जासूस, ISI का एजेंट आदि क्या-क्या नहीं कहा गया था।
एक भाजपा सांसद (बलबीर पुंज) ने उन्हें "पत्रकार के चोले में जासूस" कह डाला था। वे सब कथित तथ्य पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियों के हवाले से मिले थे जो अंततः झूठे निकले। गिलानी को तिहाड़ का नरक और बीवी-बच्चों को अपमान का जीवन भोगना पड़ा। भला हो जॉर्ज फर्नांडीज का जिन्होंने पीड़ित की मदद की। आज Iftikhar Gilani DNA अखबार के सम्मानित सहायक संपादक हैं। उनकी किताब My Days in Prison (पेंगुइन से प्रकाशित) पढ़नी चाहिए।
मैं अब भी नहीं कहता कि बलात्कार नहीं हुआ, न जांच मुकम्मल होने तक यह मानूंगा कि बलात्कार हुआ। पुलिस अपना काम कर रही है। यही बार-बार कहता हूँ कि काश आरोप लगाने वाली युवती वक्त पर मधु किश्वर की जगह पुलिस के पास चली जाती, या मधु ही उसे ले जातीं। जैसे वे CD बनाने में लग गईं, लोग "नोट" और "चिट्ठियां" डिस्कस कर रहे हैं! आरोपित को सूली चढ़ा देने का यह वही रवैया है जो तीन महीने से सोशल मीडिया पर चल रहा था।
दिल्ली से लेकर लंदन तक के भाजपाई ब्लॉगर हवा में तलवारें भांज रहे हैं। बरामदगी आदि को लेकर उनमें पुलिस जांच पूरी होने तक इंतजार का धैर्य क्यों नहीं है? पूरे मामले को वे भाजपा बनाम वामपंथ का रंग दे रहे हैं, जो हास्यास्पद है। वे सच्चाई सामने आने दें। उड़ती खबरों को वेद-वाक्य मान कर फतवे न दें। पत्रकार मित्रों से भी कहता हूँ कि पुलिस से कथित रूप से बरामद नोट या चिठ्ठी के मूल की प्रति न सही, मजमून ही जुटा लाएं। … पुलिस को कहीं खुर्शीद के कंप्यूटर में अल्बैर काम्यू (Albert Camus) के निबंध The Myth of Sisyphus के अनुवाद के अंश तो हाथ नहीं लग गए!?
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के एफबी वॉल से साभार.