बिहार के पत्रकारों के लिए खुशखबरी है कि अब सरकार उनके ऊपर मेहरबान है। सरकार ने कहा है कि पत्रकार कल्याण कोष से मिलने वाली राशि 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी गई है। सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री वृषिण पटेल ने विधान परिषद में बताया कि सरकारी बसों में दो सीट पत्रकारों के लिए आरक्षित रहेगी। सबसे मजेदार है कि अब तक पत्रकारों के कल्याण की घोषित योजनाएं विफल ही साबित हुई हैं। नीतीश कुमार की पिछली सरकार में पत्रकारों के लिए आवास देने आश्वासन दिया गया था, लेकिन अब तक झोपड़ी भी नहीं मिली।
बिहार में पत्रकारों के लिए प्रेस क्लब गठित करने की घोषणा भी हुई थी। लेकिन क्लब की बैठकों में अप्रिय वारदातों की खबर आयी और उसके बाद क्लब फिर किस हालत में है, उसका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इस बार आईपीआरडी मंत्री ने कल्याण कोष की राशि बढ़ाने की घोषणा की है। लेकिन यह किन पत्रकारों को मिलेगी, उस संबंध में उन्होंने कुछ नहीं कहा। बिहार में कम से कम तीन श्रेणी के पत्रकार है। पहली श्रेणी अधिमान्य पत्रकारों की है, जिसको सरकारी रिकार्ड में पत्रकार माना गया है। उन्हें ही सरकार से मिलने वाला कूपन नसीब होता है।
दूसरी श्रेणी उन पत्रकारों की है, जिन्हें मीडिया संस्थानों ने परिचय पत्र इशू किया है, लेकिन वे अधिमान्य नहीं है। बोलचाल की भाषा में कई बार यह कार्ड उन्हें पुलिस और अपराधियों के आतंक से बचाता है। कुछ संस्थानों में यह कार्ड पंचिंग मशीन में आरती दिखाने (हाजिरी बनाने) के काम आता है। इस कार्ड के आधार पर सुविधा के नाम पर सिर्फ रेलवे के लिए पत्रकार काउंटर से टिकट कटाने में सुविधा होती है।
तीसरी श्रेणी के वे पत्रकार हैं, जिन्हें आप मीडिया संस्थानों के लिए मीडिया का बंधुआ मजदूर कह सकते हैं। उनके पास न संस्थान का परिचय पत्र होता है और न अखबार के संपादक उन्हें अपना पत्रकार मानते हैं। उन्हें आप वसूली एजेंट कह सकते हैं। वह मौका विशेष के लिए शुभकामना और बधाई सन्देश के नाम पर स्थानीय नेता और अधिकारियों से विज्ञापन के नाम पर वसूली करते हैं और उससे मिलने वाली कमीशन को ही अपना मेहनताना मानते हैं। ऐसे पत्रकार मीडिया संस्थानों के मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तर पर काम करते हैं। अब सरकार को यह भी बताना चाहिए कि आखिर वह किस श्रेणी के पत्रकारों के कल्याण की बात कर रही है।
बीरेंद्र कुमार यादव
kumarbypatna@gmail.com