लखनऊ : भाजपा राज्य मुख्यालय पर चैनल के पत्रकारों में हुए संघर्ष की घटना ने भाजपा के मीडिया प्रभारी और एक प्रवक्ता का मीडिया प्रेम भी खोल कर रख दिया है। मीडिया प्रभारी को बड़े नेताओं के सामने मीडिया पर अपनी पकड़ की ताकत दिखाने का इतना शौक है कि वे आंय-बांय-सांय अखबार और चैनल के पत्रकारों को नेवता देकर भीड़ जुटा लेते हैं। इसी मैनेजमेंट के बल पर पूर्वांचल के एक जिले से टिकट पाकर विधानसभा चुनाव भी हार चुके हैं। हां, जब भाजपा का कोई विशेष कार्यक्रम हो तो इसमें फिर चुनिंदा लोगों को ही आमंत्रित किया जाता है, खास कर स्वजातीय बंधुओं और बड़े संस्थानों के पत्रकारों को।
इन लोगों के छपने और दिखने की चाह में भाजपा की प्रेस कांफ्रेंस से अब छोटी-मोटी नुक्कड़ सभाओं के रूप में दिखने लगी है। ऐसे में असली नकली की पहचान बड़ी मुश्किल हो गई है। लेकिन यहां के छपाऊ और दिखाऊ नेताओं की क्या कहिए। उन्हें इन सबसे मतलब नहीं है। यह मीडिया के लोग आपस में तय करे कि उनमें कौन असली नकली हैं। यहां होने वाली प्रेस काफ्रेंस में जुटने वालों पत्रकारों की भीड़ किसी बड़े समागम से कम नहीं होती। गली मोहल्ले से निकलने वाले पत्र पत्रिकाओं के संपादक रिपोर्टर से लेकर तहसील कस्बे के चैनलों के रीजनल हेड और पालीटिकल एडिटर टाइप के स्वनाम धन्य मीडियाकर्मियों को बैठने से लेकर नाश्ते का डिब्बा झटकने के लिए एक दूसरे को पछाडऩे का संघर्ष देखते बनता है।
पत्रकारों के इस संघर्ष को देखकर एक नेता कहते है कि आपस में यह संघर्ष नेताओं के किसी संघर्ष से कम नहीं है। भाजपा हो या कोई दल इन कार्यालयों में होने वाली प्रेस क्रांफ्रेंस पत्रकारों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होती। भीड़ इतनी जुटती है कि अगर नेता न जल्दिाएं तो लोग उसी कुर्सी पर जाकर धंस जाए। भाजपा मुख्यालय में होने वाली प्रेस कांफ्रेस के डायस में लगी कुर्सियों पर बैठने के लिए भी संघर्ष कम नहीं होता है। प्रवक्ताओं से लेकर मीडिया प्रभारियों में भी एक दूसरे को दुलत्ती मारने में कोई पीछे नहीं रहता।
भाजपा के मीडिया प्रभारी नैतिकता को इस कदर धोकर पी गए हैं कि फर्जी पत्रकारों के लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं, लेकिन पार्टी की एक अकेली महिला मीडिया प्रभारी तक के लिए कुर्सी छोडऩे का साहस नहीं दिखाते। लेकिन महिलाओं के मान सम्मान पर भाषण देने से लेकर लंबा-चौड़ा प्रेस नोट बनाने में यहां कोई किसी से पीछे नहीं है। भाजपा के मीडिया प्रभारी और एक प्रवक्ता, जो उन्हें के इलाके से आते हैं, का दोहरा चरित्र लाख छुपाने के बावजूद लोगों को दिख जाता है।
एक नेशनल चैनल के स्टेट हेड कहते हैं कि भाजपा, कांग्रेस समेत कई पार्टियों का मीडिया प्रेम एक दिन उन्हें ले डूबेगा। अगर किसी रोज पत्रकारों के भेष में कोई बदमाश इनके बड़े नेताओं को निपटा दिया तो मुश्किल पत्रकारों के सामने भी आएगी। इसलिए वे कहते हैं कि कम से कम प्रेस क्रांफ्रेंसों में अंजान चेहरे दिखते हों उनसे संबंधित पार्टियों के लोग कम से कम जानकारी तो मांग लें, उनके बारे में पूछ तो लें। उनका कहना है कि कई बार ऐसी स्थिति होती है कि एक पत्रकार ही दूसरे पत्रकार को नहीं पहचान पाता है, जबकि जो पत्रकार होते हैं वे आमतौर पर फील्ड में आपस में मिलते रहते हैं। भाजपा कार्यालय में हुई घटना में भी ऐसा ही देखने को मिला। मारपीट करने वाले एक पक्ष को कोई नहीं पहचान पाया। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान स्थितियां और भी खराब होंगी। (कानाफूसी)