भाजपा के इस प्रवक्‍ता का जवाब नहीं, पत्रकार मित्रों से कराते हैं विरोधियों की हजामत

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लखनऊ : कहते हैं कि कोई मरे, कोई मौजै गावें। अखबारों में छपने की भूख और टीवी चैनलों पर दिखने की अतृप्त लालसा ने उत्तर प्रदेश भाजपा के एक प्रदेश प्रवक्ता को इस कदर दीवाना बना दिया है कि उनके अपने गाडफादर तो मेडिकल कालेज में डेंगू से जूझ रहे हैं, लेकिन यह प्रवक्ता महोदय कलफ लगा कुर्ता और पायजामा पहनकर भाजपा मुख्‍यालय में आकर डंट जाते हैं। जबकि गॉडफादर की बदौलत ही उन्‍होंने नाम और दाम दोनों बनाया।

पर यह प्रवक्ता महोदय इस बात के कायल हैं कि राजनीति में चलती का नाम गाड़ी है। नेता जी डेंगू के मारे अस्‍पताल में पड़े हैं तो पड़े रहें। अगर वे (प्रवक्ता महोदय) चार दिन नहीं छपेंगे तो उनकी टीआरपी जरूर कम हो जाएगी। हालांकि उनकी टीआरपी बाकी प्रवक्ताओं की अपेक्षा बनी रहे इसकी चिंता प्रवक्ता महोदय से ज्यादा उनके स्वाजातीय मीडिया के मित्रों का भी है। हो भी क्यों न, भाजपा सरकार में मकान दुकान से लेकर ट्रांसफर पोस्टिंग तक में वरीयता स्वाजातीय मीडिया कर्मियों को ही दी गई है। इनमें कुछ बाहर चले गए और कुछ अभी भी नमक का हक अदा कर रहे हैं। हालांकि इस बीच इन प्रवक्ता महोदय के कई और स्‍वजातीय साधक तैयार हो गए हैं। जिनकी सलाह और मशविरे पर न सिर्फ प्रेस नोट तैयार होते हैं बल्कि उनके नेता का किस इश्‍यू पर कांफ्रेस करना सही रहेगा, इसका सजेशन भी यही लोग देते हैं।

जब इन प्रवक्ता महोदय को प्रेस नोट और चैनलों पर बोलने के लिए कोई मुद्दा नहीं मिलता है तो अखबारों वाले से ही पूछा करते हैं कि क्या बोला जाए? उधर इनके राजनीतिक गाडफादर को संभालने के लिए तिवारी जी अकेले लगे हैं। यह दोनों ही कल (आज) राज की दांए बाएं माने जाते हैं। प्रतिस्पर्धा यह रहती है कौन बड़ा तराजू है। हालांकि इस समय तो नंबर अपने तिवारी जी के ज्‍यादा बन रहे हैं, क्यों कि अस्पताल में सेवा सुश्रुषा में वे पूरे मनोयोग से लगे हैं। इधर प्रवक्ता महोदय सोम मंगल और बुधवार की ड्यूटी मुस्तैदी से बजा रहे हैं। बाकी दो प्रवक्ता कहीं उनसे अच्छा और ज्यादा न बोल जाएं, इस चिंता से यह प्रवक्ता महोदय हमेशा ग्रसित रहते हैं। यह प्रवक्ता महोदय भले कोई चुनाव न जीत पाए हों, लेकिन कम से कम एक नेता के चिंटू होने के नाते अपने समकक्ष वाले प्रवक्ताओं से तो जीतते ही रहते हैं।

चुनाव कोई हो, पूर्वांचल में कौन दल और नेता प्रभावी रहेगा प्रवक्ता यह भाजपा मुख्‍यालय के कक्ष में बैठकर ही बताते हैं। बाकी काम उनकी हां में हां मिलाकर उनके कुछ स्वाजातीय पत्रकार मित्र कर देते हैं, जिनकी इन प्रवक्ता महोदय के गाडफादर में अटूट और अबाध श्रद्धा है। इतना ही नहीं पार्टी के भीतर की अपने विरोधियों की काम लगाऊ खबरें भी अपने कुछ खास पत्रकार मित्रों को गाफिल करते रहते हैं। अगर लालजी टंडन की प्रेस कांफ्रेंस है तो अपने पत्रकार मित्रों से लखनऊ सीट पर नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह की दावेदारी का सवाल जरूर पूछवाते हैं। हालांकि मासूम इतने हैं कि जिसकी बजाते हैं उसके बगल में बैठने से भी परहेज नहीं करते हैं। शेष बातें अगली कड़ी में। (कानाफूसी)

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