व्यस्तता के चलते इन दिनों ना नियमित रूप से ‘भड़ास’ देख पा रहा हूं और ना कुछ लिख पा रहा हूं। 5 जुलाई को जैसे ही ‘भड़ास’ देखा, यशवंत की गिरफ्तारी की खबर पढ़ी। उनकी बुद्धि पर तरस आया जिन्होंने अपनी ‘ताकत’ का यह बेजा इस्तेमाल किया और अनचाहे ही एक पंगा ले लिया। यशवंत को जेल भिजवाने वालों को शायद अहसास ही नहीं है कि वे क्या बेवकूफी कर बैठे हैं। उन्हें अच्छी तरह पता है कि इस देश की जेलें सुधार गृह की अवधारणा को कभी का पीछे धकेल चुकी हैं। वहां की यात्रा पर जाने वाला दो चार नए डिप्लोमा-डिग्री लेकर ही आता है। अपन पूरी तरह यह मानकर चलते हैं कि यशवंत को जेल जाने का डर कभी रहा ही नहीं था।
कायर और डरपोक तो सच और खरा बोलने से भी डरते हैं। ईमानदार और सच्चा आदमी बेखौफ, बिंदास सच बोलता है और यहां तो यशवंत ना केवल खुद बेखौफ होकर सच लिखते हैं बल्कि दूसरों को सच लिखने के लिए कलम, दवात, स्याही, कागज, टेबल तक उपलब्ध करवाते हैं। यशवंत को पता है कि सच बोलने पर जेल जाना पड़ सकता है। सच ओढ़ने, बिछाने, लिखने, लिखवाने, कहने और कहलवाने के कारण यशवत पर 75 से ज्यादा मानहानि के मुकदमे चल रहे हैं। सच्चाई के आरोपों के हिस्ट्रीशीटर के रूप में अगर यशवंत अगर ये मुकदमे लड़ रहे थे तो इनकी जीत/हार/अपील/रिवीजन/तारीखपेशी/वकील/मुंशी/पेशकार/गवाही/जेल/जमानत के लिए भी तैयार ही थे।
यशवंत के थाने और जेल में रहने का मतलब है, अब पुलिस, हिरासत, थाना, बैरक, सीखचे, गार्ड और सीखचों के पीछे सिसकती जिंदगियों और दबंगों की दबंगई की भावी भड़ासों का सिलसिला। और यह सिलसिला कितनों की नौकरी भी ले सकता है, नए सवाल भी खडे़ कर सकता है, नई मुसीबतें भी ला सकता है। जिंदगी के हर कदम को नई जंग मानकर जिंदगी गुजारने वाले यशवंत को जेल के सीखचे नई इबारतों के लिए और हौंसलों की बुलंदियों के लिए नए अनुभव देंगे। कुछ की बेवकूफी यशवंत की इस उम्र में नई ‘अक्ल ढाढ’ पैदा कर रही है। चिंता मत करना यशवंत हमेशा की तरह आज भी इस जंग में अपन आपके साथ हैं।
राजेंद्र हाड़ा राजस्थान के अजमेर के निवासी हैं. करीब दो दशक तक सक्रिय पत्रकारिता में रहे. अब पूर्णकालिक वकील हैं. यदा-कदा लेखन भी करते हैं. लॉ और जर्नलिज्म के स्टूडेंट्स को पढ़ा भी रहे हैं. उनसे संपर्क 09549155160, 09829270160 के जरिए किया जा सकता है.
इसे भी पढ़ें…