यूपी में सूचना आयुक्त बनने के लिए कई पत्रकार भी हाथ-पैर मार रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि खाली पड़ी आठ सीटों में कम से कम दो सीटों पर पत्रकार कोटे से नियुक्ति होनी है. इसमें एक नाम तो क्लीयर है, सारी लड़ाई दूसरे सीट के लिए चल रही है. पत्रकार कोटे से सूचना आयुक्त बनने वाले एक सीट पर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह बिष्ट का नाम तय माना जा रहा है. अरविंद सिंह सपा प्रमुख के समधी हैं, लिहाजा उनकी दावेदारी को लेकर किसी को कोई शंका नहीं है. पर दूसरे सीट को लेकर लखनऊ के कई धुरंधर पत्रकार लाबिंग करने में जुटे हुए हैं.
सूत्र बता रहे हैं कि यहां के तथाकथित बड़े पत्रकार जो हमेशा सत्ता से नजदीकी बनाने में विश्वास करते रहे हैं या फिर खुद का ऐसा आभामंडल गढ़ चुके हैं कि उनसे बड़ा पत्रकार लखनऊ की धरती पर नहीं है, सूचना आयुक्त बनने के लिए मरे जा रहे हैं. खबर है कि सूचना आयुक्त बनने की कोशिश में लगे ऐसे ही एक पत्रकार पिछले दिनों व्यक्तिगत आयोजन के बहाने होटल ताज में पार्टी दी. लाखों रुपए इस पार्टी पर खर्च हुए. सत्ताधारी दल के कई नेताओं और अधिकारियों को इसमें आमंत्रित किया गया. परन्तु महाशय को निराशा ही हाथ लगी.
दो चार अधिकारियों को छोड़कर सत्ता पक्ष से जुड़ा कोई बड़ा नेता पत्रकार महोदय की पार्टी में नहीं पहुंचा. इससे इनकी सारी मंशा धरी की धरी रह गई. हालांकि इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि इन पत्रकार महोदय की बसपा सरकार से भी बहुत नजदीकी थी. बहनजी के एक खासमखास माने जाने वाले नेता के खास बनकर इन्होंने पिछली सरकार में अपना खूब रूतबा बनाया. उसका भरपूर फायदा भी लिया, जबकि किसी दौर में ये नेताजी के भी खास बनते फिरते थे. सत्ता के साथ जाने की यही फितरत इस बार इन पर भारी पड़ गई.
सूत्र बता रहे हैं कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए हुई बैठक में बसपा की तरफ से इनके नाम को उठाया गया था. इसका परिणाम यह रहा कि सत्ता पक्ष ने इनके नाम को अघोषित तरीके से बैन कर दिया. इसी बैन को हटाने के लिए इन्होंने पार्टी दी. पार्टी के बहाने गिले शिकवे दूर करने की रणनीति तय की, लेकिन किसी के नहीं आने से इनकी सारी कोशिशें धरी की धरी रह गई. हालांकि इन्होंने अपना प्रयास छोड़ा नहीं है. कोशिश जारी है, पता नहीं कब भाग्य पलटा खा जाए, कब नेताजी को दया आ जाए.
खैर, इनके अलावा भी कई तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार सूचना आयुक्त की दूसरी कुर्सी पाने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं. नैतिकता की खाल ओढ़े एक और पत्रकार, जिन पर अपने मकान को किराए पर देकर सरकारी घर का आनंद उठाने के आरोप लग चुके हैं, भी सूचना आयुक्त की कुर्सी के पाने के लिए सारे जतन कर रहे हैं. नए पत्रकारों में नैतिकता गालिब करने वाले यह सज्जन भी सूचना आयुक्त बनने के सपने देख रहे हैं. अब देखना है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में पत्रकार कोटे से सूचना आयुक्त की दूसरी कुर्सी किस भाग्यशाली व्यक्ति के नसीब में आती है. (कानाफूसी)