: पत्रकार रवींद्र शाह को याद किया गया : इंदौर। पत्रकारिता का आवरण और कलेवर बदल गया है। वर्तमान में पत्रकारिता पर कॉर्पोरेट कल्चर पूरी तरह हावी है। मीडिया अब टर्नओवर वाली कंपनी बन गया है। समाज से जुड़े सरोकार अब पत्रकारिता में दिखाई नहीं देते हैं। न्यू मीडिया के लिए भारत अब सिर्फ एक बाजार है। मीडिया में आए इन्हीं परिवर्तनों से सोशल साइट्स के रूप में नए मीडिया का उदय हुआ है।
ये विचार मीडिया से जुड़े वक्ताओं ने स्व. पत्रकार रवीन्द्र शाह की याद में 'पत्रकारिता- कॉर्पोरेट कल्चर- न्यू मीडिया' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किए। पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि मीडिया के स्वरूप में बदलाव आ रहा है और अब अखबारों का एकाधिकार खत्म हो गया है। न्यू मीडिया के नाम पर सोशल साइट्स जैसा प्लेटफार्म लोगों को मिल गया है। उन्होंने कहा कि न्यू मीडिया के इस दौर में देश में कई हिस्सों में ऐसी समस्याएं हैं, जो देश के सामने नहीं आ पाती हैं। न्यू मीडिया केजरीवाल का इलेक्ट्रॉनिक एडिशन है।
श्रीवर्धन त्रिवेदी ने कहा कि पत्रकारिता का आवरण, कलेवर बदल गया है। व्यावसायिक जरूरतों ने कॉर्पोरेट कल्चर को बढ़ावा दिया है। हर तरह के मीडिया पर दबाव बड़ा है। पछाड़ने की प्रतियोगिता के घालमेल ने मीडिया के स्वरूप को बदल दिया है। कॉर्पोरेट कल्चर का मीडिया में आना बुरी बात नहीं हैं, लेकिन इसकी एक सीमा होनी चाहिए। इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया के बारे में कहा कि यह आत्ममुग्धता का क्षेत्र है। इससे लोगों की निजता खत्म हुई है।
भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह ने कहा कि आजकल मीडिया पैसा पैदा करने की मशीन बन गया है। मीडिया टर्नओवर बढ़ाने वाली कंपनी हो गया है। कॉर्पोरेट घरानों के इस क्षेत्र में आने से पत्रकारिता करने वाले पत्रकार मैनेजर बन गए हैं। कॉर्पोरेट मीडिया के दौर में पत्रकारिता बिकाऊ है। उन्होंने कहा कि मीडिया भ्रष्ट नहीं हुआ है, उसे भ्रष्ट किया गया है। न्यू मीडिया के नए स्वरूप में सोशल मीडिया सामने आया है जिसने कॉर्पोरेट मीडिया को कठघरे में खड़ा किया है। सोशल मीडिया से हर आदमी पत्रकार बन गया है। सच बोलने वाले ही पत्रकारिता को बचाएंगे।
डॉ. प्रवीण तिवारी ने कहा, बदलते मीडिया में अच्छी चीजें भी हैं और बुरी भी। जनता से जुड़े सरोकार अब मीडिया में नजर नहीं आते हैं। चैनलों, अखबारों की देश में बाढ़ आ रही है। मीडिया इंडस्ट्री में अच्छी चीज यह है कि युवाओं को अवसर मिल रहे हैं। नकारात्मक पहलू यह है कि बिना कॉर्पोरेट कल्चर के आज मीडिया चल नहीं सकता। अभिनेता पदमसिंह ने कहा कि मीडिया में कॉर्पोरेट कल्चर से आ रही परेशानियों का हल भी मीडिया से जुड़े लोगों को निकालना होगा।
कार्यक्रम की शुरुआत में भैरूसिंह चौहान ने कबीर गीत प्रस्तुत किए तथा सामाजिक संस्था परितृप्ति के सामाजिक कार्यों को वीडियो फिल्म द्वारा प्रस्तुत किया गया। सभी वक्ताओं ने रवीन्द्र शाह को इनोवेटिव और कर्मशील पत्रकार बताया। 2012 में एक कार्यक्रम में रवीन्द्र शाह द्वारा कहे गए आखिरी शब्दों की वीडियो क्लिप भी दिखाई गई। विचार गोष्ठी में राजीव शाह ने विषय की परिकल्पना पेश की। दीपक चौरसिया की ओर से देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की छात्रा श्रुति को पहला रवीन्द्र शाह स्मृति पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके लिए उन्हें 10 हजार रुपए और स्मृति चिन्ह दिया गया। कार्यक्रम का संचालन संजय पटेल ने किया। (साभार : वेबदुनिया)