लखनऊ में चुनावी और दल्‍ले पत्रकारों ने बढ़ाई पत्रकारिता की हरियाली

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लखनऊ में तमाम राजनीतिक दलों के मीडिया सेल देखने वाले परेशान हैं. परेशानी का कारण खबरों का छपना या खिलाफ खबरें छपना नहीं बल्कि चुनावी पत्रकारों की भरमार है. दूसरे दल्‍ले पत्रकार इन लोगों के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं. लखनऊ में आजकल अचानक पत्रकारों की भारी बाढ़ आ गई है. ऐसा लगने लगा है जैसे पत्रकारों का सैलाब ही लखनऊ की सरजमीं पर बह कर आ गया हो.

चुनाव आने के बाद से ही लखनऊ के पत्रकारिता के मौसम में कोपलें फूटने लगी थीं, लेकिन पहले चरण का नामांकन शुरु होने के बाद तो बस पत्रकारिता की हरियाली छा गई है. जिधर देखो उधर पत्रकार. सपा में अगर किसी की प्रेस कांफ्रेंस होती हैं तो पहली लाइन में दल्‍ले टाइप के पत्रकारों का कब्‍जा होता है, जो लिखते पढ़ते तो कहीं नहीं हैं, लेकिन सवाल पूछकर नेताजी, सीएम, शिवपाल की नजर में जरूर आ जाते हैं. और भगवान कसम, सबसे ज्‍यादा सवाल यही पूछते हैं. नेता भी समझता है कि बड़ा सवाली पत्रकार है. बाद में ये लोग उनसे दो-चार ट्रांसफर-पोस्टिंग कराकर साल भर की आमदनी पूरी कर लेते हैं.

लखनऊ में भोजन के लिए जूझते चुनावी पत्रकार

दल्‍लों के बाद नंबर आता है चुनावी पत्रकारों का. चुनाव के मौसम में अवतरित होने वाले ये पत्रकार साल भर मेढकों की तरह कहीं सुसुप्‍ता अवस्‍था में पड़े होते हैं, लेकिन चुनावी बरसात का मौसम देख अचानक टर्राने लगते हैं. जहां देखो वहीं इनकी भीड़ नजर आती है. सपा-बसपा वाले इनको ज्‍यादा भाव नहीं देते लिहाजा ये औकात में बने रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और भाजपा में इन पत्रकारों की तूती बोलती है. मजाल है कि इन दोनों दलों का मीडिया सेल देखने वाले प्रभारी किसी दल्‍ले या चुनावी पत्रकार को कुछ बोल सके. सबसे ज्‍यादा बवाल यही काटते हैं.

हां, इन सब के बीच सबसे बुरी स्थिति उन पत्रकारों की होती है, जो सच में कहीं लिखते पढ़ते हैं. ये बेचारे दल्‍लों और चुनावी पत्रकारों की भीड़ से पिछड़कर चुपचाप बैठे रहते हैं. ताजा वाकया भाजपा अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह के पत्रकार वार्ता का है. पत्रकार वार्ता के अलावा लंच का भी कार्यक्रम था. मीडिया सेल के लोगों ने चुनिंदा पत्रकारों को इसकी सूचना दी कि 'पीसी फालोड बाई लंच'. बस क्‍या था सूचना लिक हो गई और चुनावी पत्रकार 'बाई के झोंक' में 'फालोड बाई लंच' करने आ पहुंचे. दल्‍ले भी पहली कतार में, कुर्सी उठाकर सबसे आगे बैठे ताकि राजनाथ चेहरा तो देख लें. उनका तथा भाजपा का भविष्‍य ठीक लग रहा है तो पहचान बनी रहेगी तो काम आ जाएंगे.

राजनाथ की पीसी में अराजक स्थिति

खैर, पत्रकारों की अराजकता के बीच किसी तरह राजनाथ सिंह की पीसी खत्‍म हुई तो चुनावी पत्रकार लंच पर टूट पड़े. आयोजकों का चेहरा भक्‍क हो गया कि खाना कम पड़ जाएगा. उन्‍हें उम्‍मीद नहीं कि इस तरह खाने के लिए लूट मार मचेगी. पर मची और बहुत जानदार और शानदार तरीके से मची. तमाम वरिष्‍ठ पत्रकार माहौल को अपने हिसाब का न देख मौका-ए-वारदात से निकल लिए. हालांकि इसमें खास बात यह रही कि चुनावी पत्रकारों में केवल पुरुषों का ही नहीं बल्कि महिलाओं की भी जमकर भागीदारी रही. चिंता की बात नहीं है, लखनऊ में पत्रकारिता फल-फूल रही है.   

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