वीर अनशनकारियों का देश : कई करते हैं, कुछ कराते हैं

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अन्ना हजारे से नाराज हमारे महान नेताओं और मंत्रियों को इस बात पर घोर आपत्ति है कि केवल 12 दिन भूखे रह कर एक मामूली आदमी जननायक बन गया जबकि वर्षों से देश सेवा में जी-जान से जुटे नेताओं और मंत्रियों को कोई भाव नहीं दे रहा है, जिनकी बदौलत देश के लाखों गरीब, मजदूर और किसान वर्षों आमरण अनशन कर रहे हैं। अन्ना का अनशन तो 12 दिन में ही खत्म हो गया लेकिन देश के नेताओं के कारण लाखों लोग महीनों-वर्षों तक आमरण अनशन कर रहे हैं और कई तो अपने अनशन के प्रति इतने समर्पित होते हैं कि वे भूख के कारण स्वर्ग सिधार जाते हैं, लेकिन अपना अनशन नहीं तोड़ते, लेकिन इन्हें कोई महत्व नहीं दे रहा है।

इन नेताओं का कहना है कि अन्ना हजारे का अनशन महज प्रचार पाने का हथकंडा भर ही था। नाम दिया आमरण अनशन का और 12 दिन में टूट गया। दूसरी तरफ हमारे देश के लाखों गरीब हैं जो हो-हल्ला और प्रचार किये बगैर ताउम्र अनशन करते हुये जन्नत को नसीब हो रहे है, लेकिन मीडिया की नजर में इनका बलिदान खबर नहीं है। यह मीडिया का दोहरा चरित्र नहीं तो और क्या है। एक आदमी ने 12 दिन अनशन किया तो मीडिया वालों ने उसे सर आंखों पर बिठा लिया, चौबीसों घंटे उसी की खबर जबकि जो लाखों लोग अनशन करते हुये खुशी-खुशी मौत को गले लगा रहे हैं और जिन नेताओं ने उन लाखों लोगों के आमरण अनशन के लिये माकूल परिस्थितियां बनायी, उनकी बाइट कोई नहीं ले रहा है।

उल्टे नेताओं के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। उन्हें यह कहकर बदनाम किया जा रहा है कि उन्होंने देश को बर्बाद कर दिया। इसके पीछे जरूर गहरी साजिश है। और नेताओं की तो छोड़िये, उस महान नेता की भी कहीं वाह-वाही नहीं हो रही है जिन्होंने इस बात के लिये हर संभव कोशिश की कि गरीबों का अनशन किसी तरह से टूटे नहीं। उन्होंने सभी गरीबों को अनशन पर रखने के अपने संकल्प को पूरा करने के लिये गोदामों में भरे करोड़ों टन अनाज को सड़ा दिया। अदालत,
विपक्ष, मीडिया और विपक्ष सड़े अनाज को गरीबों में बांट देने की सलाह देते रहे लेकिन वह अपने संकल्प से नहीं टिगे और उन्होंने इस बात की भरसक कोशिश की कि किसी भी गरीब के पेट में अन्न का एक दाना नहीं पहुंचे, चाहे सड़ा हुआ अन्न क्यों नहीं हो। उनकी कोशिश काफी हद तक सफल रही, लेकिन उनकी सफलता सरकार, सरकारी एजेंसियों और कई राजनीतिक दलों के पारस्परिक सहयोग से ही संभव हुयी।

हमारे नेताओं की वर्षों की कोशिश का नतीजा है कि आज देश में ऐसी परिस्थितियां तैयार हुयी है जिसके कारण न केवल लाखों गरीब ताउम्र अनशन करने को मजबूर हैं, बल्कि उनकी आने वाली सात पुश्तें भी नेताओं के दिखाये मार्ग पर चलती रहेंगी। इन नेताओं के कारण ही हमारा देश शहीदों एवं बलिदानियों का देश कहलाता है। हमारे देश में हर जगह वीर अनशनकारी भरे हुये हैं जो अनशन करते-करते शहीद हो गये। इन सबका श्रेय नेताओं को ही तो मिलना चाहिये, लेकिन आज उल्टे इन नेताओं को कोसा जा रहा है। सोचिये लाखों लोगों को ताउम्र अनशन पर रखना कितना धर्म का काम है। धर्म शास्त्रों में भी पुण्य प्राप्त करने के लिये भूखे रहने की सलाह दी गयी है। हमारे देश में प्राचीन काल में संत महात्मा और धार्मिक औरतें और कुछ महान लोग ही भूखे रहकर पुण्य प्राप्त करते थे। लेकिन आज नेताओं और मंत्रियों की बदौलत आम आदमी भी यह पुण्य प्राप्त कर रहा है और स्वर्ग जा रहा है।

वैसे तो हमारा देश तो सदियों से वीर अनशनकारियों का रहा है। लेकिन ये नेता चाहते हैं कि हर व्यक्ति अनशनकारी बनकर देश के लिये कुर्बानी दे। हमारे कर्तव्यनिष्ठ एवं जनप्रेमी नेता अपने कठोर इरादे को पूरा करने में काफी सफल हा चुके हैं और उम्मीद है कि ये नेता अगर सत्ता में बने रहे और अपने कर्तव्य से विचलित नहीं हुये तो बची-खुची सफलता अगले कुछ वर्षों में पूरी हो जायेगी। जरूरत तो इस बात की है कि देशवासियों को अन्ना हजारे जैसे फर्जी अनशकारियों के भुलावे में आने से बचाया जाये। अगर ऐसा हो गया तो जल्द ही हमारे महान नेताओं एवं मंत्रियों का सपना पूरा हो जायेगा।

इस हास्य-व्यंग्य के लेखक विनोद विप्लव वरिष्ठ पत्रकार हैं और समाचार एजेंसी यूनीवार्ता में बतौर स्पेशल करेस्पांडेंट कार्यरत हैं.

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