: निवेशकों का पैसा कंपनी की दूसरी योजनाओं में लगवाया जा रहा : सहारा इण्डिया उच्चतम न्यायालय द्वारा सहारा समूह की दो योजनाओं के मार्फत निवेशकों से 17400 करोड़ रुपये वसूली गई राशि को लौटाने के आदेश का पालन किए जाने के बजाय कंपनी द्वारा निवेश राशि को दूसरे योजनाओं में गुप्त तरीके से बदला जा रहा है। जानकारी के अनुसार, सहारा ग्रुप द्वारा सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन के जरिये 17400 करोड़ जुटायी गई थी। 2 करोड़ 30 लाख छोटे निवेशकों से परिवर्तनीय डिबेंचर के जरिये वसूली गई उक्त राशि को पूंजी बाजार की नियामक संस्था ‘‘भारतीय प्रतिभूति एंव विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वापस करने का आदेश पिछले साल जून माह में दिया था। उक्त आदेश के खिलाफ सहारा ग्रुप सर्वोच्च न्यायालय गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी सेबी द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखते हुए सहारा समूह को निवेशकों से जुटाये गए 17400 करोड़ रुपये की राशि 15 प्रतिशत सूद के साथ लौटाने का आदेश गत माह दिया था। शीर्ष कोर्ट ने पैसा लौटाने के लिए कंपनी को 3 माह का समय दिया था। शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा था कि सेबी निवेशकों के बारे में पता लगायेगा और यदि निवेशकों के जानकारी नहीं मिलती है तो यह पैसा सरकार के खाते में जमा कराना होगा। बताया जाता है कि सहारा ग्रुप द्वारा शीर्ष कोर्ट के फैसले को पूर्णरुपेण पालन करने की बजाय सहारा ग्रुप दूसरे योजनाओं में गुप्त रूप से बदलने में लगी हुई है। उक्त कार्य को अंजाम दे रहे हैं सहारा ग्रुप के फील्ड वर्कर। वे निवेशकों से कह रहे है कि अगर आप अपना निवेश कनवर्जन (ट्रांसफर) नहीं करवायेंगे तो उक्त राशि पर आयकर कटेगा।
यह सब कार्य हो रहा है बहुत ही गुप्त तरीके से, ना ही किसी तरह का लिखित आदेश कंपनी द्वारा हुआ है और ना ही कोई पर्चा छपावाया गया है। शहर से लेकर सुदुरवर्ती कस्बों तक फैले सहारा ग्रुप के कार्यकर्ता दिन-रात एक करके निवेशकों को इसके लिए समझा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि सहारा ग्रुप अपने अन्य प्लान ‘‘क्यू-शाप प्लान-एच‘‘ में ट्रांसफर किया जा रहा है। निवेशकों को यह भी कहा जा रहा है कि ‘‘क्यू-शाप प्लान‘‘ में निवेश की गई राशि 6 वर्षों में सवा 2 गुना हो जायेगी। निवेशकों को फील्ड कार्यकर्ताओं द्वारा यह भी भय दिया जा रहा है कि पुराने किये गये निवेश सेबी के मार्फत भुगतान किया जायेगा, जिसमें लम्बी प्रकिया लगेगी।
भोले-भाले निवेशक फील्ड कार्यकर्ताओं के बहलावे में आकर पुनः अपना निवेश सहारा की अन्य योजनाओं में ट्रांसफर करवा रहे हैं। कार्यकर्ताओं द्वारा जी–तोड़ मेहनत करने का राज यह भी छिपा है कि उक्त राशि अन्य योजनाओं में पुनः निवेश करने पर कमीशन मिलेगा। अपने कमीशन के चक्कर में कार्यकर्ता, निवेशकों को समझाने में गलत–सलत बातों का भी सहारा ले रहे हैं। बताया जाता हैं कि सहारा ग्रुप की मंशा शीर्ष आदालत के फैसलों को पूरी तरह पालन नहीं करने की है। सहारा ग्रुप 17400 करोड़ रुपये निवेशकों को 15 प्रतिशत ब्याज सहित लौटाने की बजाय जनता से निवेश के जरिये उगाही की गई राशि को अधिकतम रकम पुनः अपने पास ही रखने की है।
सहारा यह भी दिखाना चाहती है कि निवेशकों ने अपने स्वेच्छा से धन पुनः दूसरे योजनाओं में ट्रांसफर करवा लिया हैं। परन्तु हकीकत कुछ और ही है। निवेशकों को राशि वापस किए जाने की प्रक्रिया पर शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत न्यायाधीश वीएन अग्रवाल को निगरानी की जिम्मेवारी सौंपी गई है। न्यायालय ने आदेश में यह भी कहा है कि कोर्ट के आदेश को सहारा पालन नहीं करती है तो ‘‘सेबी‘‘ सहारा समूह की संपति को अटैच कर उसकी बिक्री कर सकेगी।
संजय कुमार की रिपोर्ट.