उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में आरटीआई के तहत सूचना मांगना तथा मानवाधिकार आयोग में पुलिस उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराना एक पत्रकार को इतना महंगा पडा कि पुलिस ने उसे झूठे मुकदमें में फंसाकर उसका उत्पीड़न शुंरू कर दिया। यूपी पुलिस इसके पहले भी पोल खोले जाने से नाराज होकर या बड़े लोगों के दबाव में फर्जी फंसाती रही है। बिजनौर पुलिस के उत्पीड़न का विरोध करते हुए पत्रकारों ने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
जानकारी के अनुसार थाना नूरपुर क्षेत्र के पुलिस उत्पीड़न के शिकार वरिष्ठ पत्रकार ने थाना कांठ के अतंर्गत ग्राम कुमखिया में एक प्राइवेट कालेज में शिक्षक व वरिष्ठ लिपिक पद पर कार्य किया था। स्कूल प्रबंधक जितेंद्र सिंह की ओर से निर्धारित मानदेय न देने तथा मांगने पर सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिसके बाद पीडित द्वारा 19 जून को पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत की गई थी। इसके बाद मानदेय न मिलने पर बिजनौर कोर्ट में वाद दायर किया गया।
तीन दिसम्बर को मानवाधिकार आयोग में पुलिस की एक पक्षीय कार्यवाही की शिकायत दर्ज कराई गई। बाद इसके थाना कांठ पुलिस आरटीआई के तहत संबधित विद्यालय तथा पुलिस से मानदेय संबंधी प्रार्थना पत्रों पर जांच संबंधी सूचनाएं मांगने पर पत्रकार कमलजीत सिंह नूर का उत्पीड़न करने पर लगी। संस्था प्रबन्धक द्वारा शासन-प्रशासन की किसी भी जांच से बचने के लिए पुलिस से मिलकर कमलजीत सिंह के खिलाफ थाना कांठ में दिनांक 5 अक्टूबर 13 को मुकदमा दर्ज करा दिया गया।
दर्ज एफआईआर का प्रतिवादी पक्ष को पता नहीं चला तथा पुलिस ने एकतरफा विवेचना कर कमलजीत सिंह नूर व उनके परिवार का उत्पीड़न शुरू कर दिया। इस संबंध में क्षेत्रीय पत्रकार पिछले सप्ताह वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मुरादाबाद से मिलकर उन्हें सही स्थिति से अवगत कराते हुए इस मैटर की किसी अन्य थाने से निष्पक्ष जांच की मांग कर चुके हैं। एक बार फिर स्थानीय पत्रकारों ने पुलिस की कार्रवाई पर रोष व्यक्त करते हुए इस प्रकरण की शिकायत कर उच्च स्तरीय जांच तथा दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।